सोमवार, 26 दिसंबर 2011

मनुवादी मोहरा अन्ना हजारे


अन्ना एंड पार्टी (मशहूर नौटंकी, महाराष्ट्र वालों) का इरादा मनुवाद -ब्राहमणवाद को मजबूत करने का था...जाहिर सी बात है कि जो व्यवस्था किसी व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से संपन्न बनाये रखे, वह व्यक्ति उस व्यवस्था को त्यागना नहीं चाहेगा...मनुवाद या ब्राहमणवाद एक ऐसी ही व्यवस्था है, जिसमें चंद मुट्ठी भर लोग सदियों से लाभान्वित हो रहे हैं...बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के कठोर एवं निरंतर संघर्ष ने बहुजनों को उनका हक़ दिलाने का सफल प्रयास किया...बाबा साहेब के आदर्शों को दलितों ने आगे बढाया और समाज में जागरूकता फैलाई...इसके चलते हाल ही के दशक में शूद्रों (OBC) को भी ब्राहमणवाद कि नीतियाँ समझ आने लगीं और वे साथ जुड़ने लगे...एक तरफ दलितों-शूद्रों की राजनैतिक दावेदारी बढ़ने लगी...तो दूसरी तरफ कई सभाएं और रैलियां होने लगीं, जिनमें दलित(SC,ST), शूद्र(OBC), बौद्ध, मुस्लिम्स ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया...एक बात स्पष्ट होती जा रही थी कि आने वाले समय में ये सभी एक-जुट होकर चुनाव लड़ेंगे...चूँकि इनकी तादात इतनी अधिक है कि ये लोग खुद की सरकार बनाकर, ब्राहमणवाद का खात्मा कर सकते हैं...यह बात सवर्ण भांप चुके थे...सवर्ण समझ गये थे की सत्ता कभी भी उनके हाथों से छिन सकती है...अब सवर्ण एक ऐसी व्यवस्था चाहते थे, जो की ब्राहमणवाद को बनाये रखे...अन्ना को चेहरा बनाकर, खेल चुरू हो गया...अन्ना एंड पार्टी, ब्राहमणवादी व्यवस्था ले ही आते, जिसमें बहुजनों को कोई भी प्रतिनिधित्व या आरक्षण नहीं था...किन्तु फिर से दलित, बहुजनों की ढाल बन कर सामने खड़ा हो गया, और ख़ुशी इस बात की है कि बहुजनों ने पूरा साथ दिया...अब जो भी लोकपाल आएगा, वह अन्ना एण्ड पार्टी के ब्राहमणवादी लोकपाल से भिन्न लोकपाल होगा, क्यूंकि अब इसमें सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व तय हो गया है और सवर्णों के निहित स्वार्थ धरे के धरे रह गये हैं...!

निष्कर्ष :-  सवर्णों का ब्राहमणवादी लोकपाल अपने आप में संविधान के चारों स्तंभों को अपने नियंत्रण में लिए हुए, एक संप्रभु था !
1. अन्ना एण्ड पार्टी (सवर्णों) के ब्राहमणवादी लोकपाल में सीधे तौर पर यह व्यवस्था थी की चाहे सरकार कोई भी हो, उसे लोकपाल से डरकर रहना होगा, लोकपाल जब चाहे प्रधानमंत्री एवं सांसदों को जांच के शिकंजे में कस लेगा !
2. न्यायपालिका लोकपाल के अधीन होने से लोकपाल न्यायिक कार्यों में हस्तक्षेप कर सकेगा और न्याय-प्रक्रिया में लोकपाल की हिस्सेदारी तय हो जाएगी !
3. लोकपाल की खुद की एक जांच एजेंसी होगी, जिसके पास लाखों कर्मचारी होंगे, जिससे की लोकपाल खुद में ही एक सशक्त प्रशासन होगा, जो कि बाकी के सभी प्रशासनिक क्षेत्रों (विभागों) को सीधे तौर पर अपने नियंत्रण में रखेगा !
4. मीडिया, व्यापार एवं एनजीओ लोकपाल से बाहर रहेंगे, वैसे भी इन क्षेत्रों में आरक्षण नहीं है...अतः यहाँ बहुजनों का प्रतिनिधित्व बहुत ही कमजोर अथवा न्यून है...इस प्रतिनिधित्व को मजबूत करने के लिए इन क्षेत्रों में भी आरक्षण अति-आवश्यक है, जिसकी वर्तमान में प्रबल मांग उठ रही है !

कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि...अब अगर दलित-शूद्र-बौध-मुस्लिम एक होकर चुनाव जीत लेते हैं और अपनी सरकार बना लेते हैं, तो भी सवर्णों का ही वर्चस्व कायम होने वाला था...क्यूंकि इनके लोकपाल में बहुजनों के लिए आरक्षण या प्रतिनिधित्व जैसी कोई बात नहीं थी, ये पूर्व की ही तरह एकछत्र राज करते...!

ब्राहमणवादी लोकपाल की मुख्य मांगे :-
1. सरकार, "प्रधान मंत्री" को लोकपाल के दायरे में लाये !
2. सरकार, "न्यायपालिका" को लोकपाल के दायरे में लाए !
3. सरकार, "सांसदों" को लोकपाल के दायरे में लाये !
4. सरकार, अपना सरकारी-बिल वापस ले !
5. तीस अगस्त (30 अगस्त) तक "अन्ना का जन-लोकपाल-बिल" संसद में पास होना ही चाहिए !
6. बिल को "स्टैंडिंग-कमेटी" में नहीं भेजा जाए !
7. लोकपाल की नियुक्ति-कमेटी में "सरकारी-हस्तक्षेप" न्यूनतम हो !
8. जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा नियम 184 के तहत करा कर उसके पक्ष और विपक्ष में बाकायदा वोटिंग करायी जाए !

आइये देखते हैं ब्राहमणवादी लोकपाल से जुड़े कुछ पहलू :-
1. यह मूवमेंट जिस समय चलाया गया तब, सरकार के गिरने की पूरी संभावनाएं थी...अन्ना एंड पार्टी (सवर्ण), जो लोकपाल (ऑंबडज़्मन) लाना चाहते हैं, वो प्रासंगिक ही नहीं है...मात्र राजनीतिक षड्यंत्र है...कुछ बड़ा गड़बड़-घोटाला है, जिसकी तरफ से करोड़ो लोगों का ध्यान हटाया जा रहा है...वर्तमान मुद्दे...कॉमन वेल्थ, 2 G स्पेक्ट्रम, टाटा-राडिया टेप-कांड, परमाणु दायित्व...इत्यादि !
2. वर्तमान सरकार ने कई औधोगिक घरानों के फोन, टेप करवाए थे...जिसमें टाटा-राडीया फोन-टेप-कांड काफ़ी चर्चा में रहा...अब अन्ना एण्ड कम्पनी (कॉर्पोरेट जगत एवं सिविल सोसाइटी) लोकपाल को फोन टेपिंग की शक्ति देने में लगे हैं...फोन टेप होने से एक तो ब्लैक-मेलिंग का ख़तरा और दूसरा ख़ुफ़िया खबरों एवं सूचनाओं के लीक होने या दुश्मनों को बेचे जाने का डर...!
3. अन्ना एण्ड कंपनी (कॉर्पोरेट जगत एवं सिविल सोसाइटी) के लोग जो कि NGOs चलाते हैं...भारत की ग़रीबी एवं लाचारी को दूर करने के लिए मदद के रूप में मिले विदेशी धन तक को हड़प जाते हैं...और ये तो सभी जानते हैं कि NGOs के मार्फत काले धन को सफेद किए जाने का रिवाज़ है...! अब सवर्ण चाहते हैं कि गवर्नमेंट फॅंडेड NGOs ही लोकपाल के दायरे में हो...भला ऐसा क्यूँ...??? जबकि सब जानते हैं कि NGOs में कितना भ्रष्टाचार है !
4. अन्ना एण्ड कंपनी (सवर्ण), व्यापार जगत और मीडिया जगत को भी लोकपाल से बाहर रखना चाहती है !
5. अन्ना एक कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति है जो की कानून की बारीकियों एवं पेचीदगियों को नहीं जानता और तो और किसी भी कानून या विधेयक या ड्राफ्टिंग की तकनिकी पहलुओं को भी नहीं जानता...और हम यह भी जानते हैं हैं की फ़ौज की नौकरी करने वाले व्यक्ति को इस प्रकार ट्रेनिंग दी जाती है की उसका IQ स्तर निम्न हो जाता है...अतः अन्ना सिर्फ और सिर्फ एक मोहरा है...इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं !

लेखक
Satyendra Humanist
inqlaab zindabad

4 टिप्‍पणियां:

  1. Shame on you .... you dont see the effort of this man rather see other thg ... have u eva in your life tried to do somethg for your motherland India? rather u ppl r like ppl b4 independence who supported british ppl .. thinking your own benifit ... itz ritefully said history repeats .... you pppl see the 1 bad thg who wants to do somethg for u ... but not 100000zz bad thgz who has already done bad for u... in last 65 years ... shame on u ....u can neva do gud to India n wont allow anyone to do so ....

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  2. सेकुलरिज्म का पोस्टमार्टम

    सेकुलरिज्म एक भ्रामक और कुपरिभाषित शब्द है.अधिकाँश लोग इस शब्द का सही अर्थ भी नहीं जानते .इस शब्द की न तो कोई सटीक परिभाषा है,और न ही कोई व्याख्या है। लेकिन कुछ धूर्तों और सत्ता लोलुप लोगों ने सेकुलर शब्द का अर्थ "धर्मनिरपेक्ष "कर दिया,जिसका मूल अंग्रेजी शब्द से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है.यही नहीं इन मक्कार लोगों ने सेकुलर शब्द का एक विलोम शब्द भी गढ़ लिया "साम्प्रदायवाद "।आज यह सत्तालोभी ,हिंदुद्रोही नेता अपने सभी अपराधों पर परदा डालने और हिन्दुओं को कुचलने व् उन्हें फ़साने के लिए इन शब्दों का ही उपयोग करते हैं। इन कपटी लोगों की मान्यता है की कोई व्यक्ति चाहे वह कितना ही बड़ा अपराधी हो, भ्रष्टाचारी हो ,या देशद्रोही ही क्यों न हो,यदि वह ख़ुद को सेकुलर बताता है ,तो उसे दूध का धुला ,चरित्रवान ,देशभक्त,और निर्दोष मानना चाहए.इस तरह से यह लोग अपने सारे अपराधों को सेकुलरिज्म की चादर में छुपा लेते हैं ।लेकिन यही सेकुलर लोग जब किसी हिन्दू संत,महात्मा ,या संगठन को कानूनी शिकंजे में फ़साना चाहते हैं ,तो उन पर सम्प्रदायवादी होने का आरोप लगा कर उन्हें प्रताडित करते हैं।सेकुलर का वास्तविक अर्थ और इतिहास बहुत कम लोगों को पता है.इस सेकुलरिज्म रूपी राक्षस को इंदिरा गांधी ने जन्म दिया था। इमरजेंसी के दौरान (1975-1977) इंदिरा ने अपनी सत्ता को बचाने ओर लोगों का मुंह बंद कराने के लिए पहिली बार सेकुलरिज्म का प्रयोग किया था।इसके लिए इंदिरा ने दिनांक 2 नवम्बर 1976को संविधान में 42 वां संशोधन करके उसमे सेकुलर शब्द जोड़ दिया था .जो की एक विदेश से आयातित शब्द है, हिन्दी में इसके लिए धर्मनिरपेक्ष शब्द बनाया गया.यह एक बनावटी शब्द है.भारतीय इतिहास में इस शब्द का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
    वास्तव में इस शब्द का सीधा सम्बन्ध ईसाई धर्म और उनके पंथों के आपसी विवाद से है।
    सेकुलर शब्द लैटिन भाषा के सेकुलो (Seculo)शब्द से निकला है। जिसका अंग्रेजी में अर्थ है 'इन दी वर्ल्ड (in the world) 'कैथोलिक ईसाइयों में संन्यास लेने की परम्परा प्रचलित है। इसके अनुसार संन्यासी पुरुषों को मौंक(Monk) और महिलाओं को नान(Nun) कहा जाता है। लेकिन जो व्यक्ति संन्यास लिए बिना ,समाज में रहते हुए संयासिओं के धार्मिक कामों में मदद करते थे उन्हें ही सेकुलर(Secular) कहा जाता था। साधारण भाषा में हम ऐसे लोगों को दुनियादार कह सकते हैं।
    सेकुलरिज्म की उत्पत्ति-
    सभी कैथोलिक ईसाई पॉप को अपना सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक गुरु मानते हैं। 15 वीं सदी में असीमित अधिकार थे। उसे यूरोप के किसी भी राजा को हटाने ,नए राजा को नियुक्त करने,और किसी को भी धर्म से बहिष्कृत करने के अधिकार थे। यहाँ तक की पॉप की अनुमति के बिना कोई राजा शादी भी नहीं कर सकता था।
    जब इंग्लैंड के राजा हेनरी 8 वें (1491-1547(ने 1533में अपनी रानी कैथरीन(Catherine) को तलाक देने,और एन्ने बोलेन्न (Anne Bollen)नामकी विधवा से शादी करने के लिए पॉप क्लीमेंट 7th से अनुमति मांगी तो पॉप ने साफ़ मना कर दिया। और हेनरी को धर्म से बहिष्कृत कर दिया। इस पर नाराज़ होकर हेनरी ने पॉप से विद्रोह कर दिया,और अपने राज्य इंग्लैंड को पॉप की सता से अलग करके ,'चर्च ऑफ़ इंग्लैंड "की स्थापना कर दी.इसके लिए उसने 1534 में इंग्लैंड की संसद में 'एक्ट ऑफ़ सुप्रीमैसी Act of suprimacy "नामका कानून पारित किया .जिसका शीर्षक था "सेपरेशन ऑफ़ चर्च एंड स्टेट ( separation of church and state) "इसके मुताबिक चर्च न तो राज्य के कामों में हस्तक्षेप कर सकता था ,और न ही राज्य चर्च के कामों में दखल दे सकता था। इस चर्च और राज्य के विलगाव के सिध्धांत का नाम उसने सेकुलरिज्म(Secularism) रखा।
    आज अमेरिका में सेकुलरिज्म का यही अर्थ माना जाता है.परन्तु यूरोप के कैथोलिक देशों में सेकुलर शब्द का अर्थ "स्टेट अगेंस्ट चर्च - state against church"किया जाता है। हेनरी और इंदिरा के उदाहरणों से यह स्पष्ट है की इन लोगों ने सेकुलर शब्द का उपयोग अपने निजी स्वार्थों के लिए ही किया था।
    आज सेकुलरिज्म के नाम पर स्वार्थी लोगों ने कई शब्द बना रखे हैं जो भ्रामक और परस्पर विरोधी हैं। कुछ प्रचलित शब्द इस प्रकार हैं -
    शब्दकोश में इसके अर्थ धर्म से संबंध न रखनेवाला,संसारी,غیر روحانی हैं

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  3. 1-धर्म निरपेक्षता -
    अर्थात धर्म की अपेक्षा न रखना ,धर्म हीनता,या नास्तिकता.इस परिभाषा के अनुसार धर्म निरपेक्ष व्यक्ती उसको कहा जा सकता है ,जिसको अपने बाप का पता न हो ,और जो हर आदमी को अपना बाप मानता हो.या ऎसी औरत जो हर व्यक्ति को अपना पति मानती हो । आजकल के अधिकाँश वर्ण संकर नेता इसी श्रेणी में आते हैं।ऐसे लोगों को हम ,निधर्मी ,धर्मभ्रष्ट ,धर्महीन ,धर्मपतित या धर्मविमुख कह सकते हैं .
    2-सर्व धर्म समभाव-
    अर्थात सभी धर्मों को एक समान मानना। अक्सर ईसाई और मुसलमान सेकुलर का यही मतलब बताते हैं। यदि ऐसा ही है तो यह लोग धर्म परिवर्तन क्यों कराते हैं? धर्म परिवर्तन को अपराध घोषित क्यों नहीं कराते,और धर्म परिवर्तन कराने वालों को सज़ा देने की मांग क्यों नहीं करते?ईसाई मिशनरियां हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन के लिए क्यों लगी रहती हैं ?या तो यह लोग स्वीकार करें की सभी धर्म समान नहीं है।
    मुसलमान तो साफ़ कहते हैं की अल्लाह के नजदीक सिर्फ़ इस्लाम धर्म ही है "इन्नाद्दीन इन्दाल्लाहे इस्लामانّ الدين عند الله الاسلام "(Sura3:19)
    सभी धर्मों के समान होने की बात मात्र छलावा है और कुछ नहीं।
    3-पंथ निरपेक्षता -
    अर्थात सभी पंथों,सप्रदायों,और मतों को एक समान मानना-वास्तव में यह परिभाषा केवल भारतीय पंथों ,जैसे बौध्ध ,जैन,और सिख,जैसे अन्य पंथों पर लागू होती है। क्योंकि यह सभी पंथ एक दूसरे को समान रूप से आदर देते हैं .लेकिन इस परिभाषा में इस्लामी फिरके नहीं आते.शिया और सुन्निओं की अलग अलग शरियतें हैं वे एक दूसरे को कभी बराबर नहीं मानते ,यही कारण है की यह लोग हमेशा आपस में लड़ते रहते हैं.उक्त परिभाषा के अनुसार केवल हिन्दू ही स्वाभाविक रूप से सेकुलर हैं.उन्हें सेकुलरिज्म का पाठ पढाने की कोई जरूरत नहीं है।
    4-ला मज़हबियत (لا مذهبيت)
    मुसलमान सेकुलरिज्म का अर्थ यही करते है। इसका मतलब है कोई धर्म नहीं होना,निधर्मी पना .मुसलमान सिर्फ़ दिखावे के लिए ही सेकुलरिज्म की वकालत करते हैं.और इसकी आड़ में अपनी कट्टरता ,देश द्रोह, अपना आतंकी चेहरा छुपा लेते हैं.इस्लाम में सभी धर्मो को समान मानना -शिर्क- यानी महा पाप है.ऐसे लोगों को मुशरिक कहा जाता है,और शरियत में मुशरिकों के लिए मौत की सज़ा का विधान है। इसीलिए मुसलमान भारत को दारुल हरब यानी धर्म विहीन देश कहते हैं। और सभी मुस्लिम देशों में सेकुलर का यही मतलब है।इस्लाम धार्मिक शासन का पक्षधर है ,और सेकुलर हुकूमत की तुलना चंगेजखान की निरंकुश हुकूमत से करता है .इकबाल ने कहा है ,
    "जलाले बादशाही हो ,या जम्हूरी तमाशा हो .अगर मज़हब से खाली हो ,तो रह जाती है खाकानी ."

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