देश में आज़ादी के बाद से ही सेकुलर कही जाने वाली राजनितिक पार्टियों की
हुकुमत रही और इन्ही सरकारों ने धार्मिक आधार देश कि दूसरी सबसे बड़ी आबादी यानि
मुस्लिम समुदाय को अल्पसंख्यको का दर्जा दिया देश कि दूसरी सबसे बड़ी आबादी वो भी
अल्पसंख्यक ? बड़ा अटपटा सा लगता है सुनने में लेकिन ऐसा हुआ क्यों ?
कारण (साजिश) साफ़ है कि सेक्युलर लोग चाहते थे कि मुस्लिम समुदाय देश कि दूसरी
सबसे बड़ी आबादी है अगर ये समुदाय जागरूक हुआ तो ये क्षेत्र में अपने प्रतिशत के
हिसाब से हिस्सेदारी मांग सकते है इसलिए इस समुदाय को सिर्फ वोट बैंक बनाये रखने
और इनकी विभागीय हिस्सेदारी को कम करने के लिए ज़रूरी था कि इन्हें मानसिक रूप से
कमज़ोर किया जाये और इसी कड़ी के पहले हिस्से में इन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर इनकी
शक्ति को कम कर दिया गया अगर ऐसा न किया जाता तो ये अल्पख्यक कहा जाने वाला
मुस्लिम समुदाय जो देश में बहुसंख्या में है अपनी राजनितिक पार्टी भी बना सकता था
और सत्ता में बराबर हिस्सेदारी कि मांग कर सकता था लेकिन इस बात से इन्हें रोक कर
आसानी के साथ लम्बे समय तक सिर्फ वोट बैंक बनाये रखा गया और सत्ता पक्ष इनका हर
तरीके से खून चूसता रहा इसके साथ ही देश पर 800 साल
तक नागरित हितो कि रक्षा करते हुए शासन करने वाले मुसल्म समुदाय को कमज़ोर करने कि
साजिशे शुरू हुयी और इस समुदाय को शिक्षा व रोज़गार से दूर करने व इनके पुरखो की
ज़मीने हड़पने के लिए योजना बांध तरीके से सेकुलरो ने काम शुरू किया और काम को आसानी
से अंजाम देने व मुस्लिमो को विरोध से रोककर गुमराह करने के लिए इस सेक्युलर
ताकतों ने कुछ मुस्लिमो को भी ख़रीदा और ज़बान खामोश रखने के बदले इन दलालों को
पार्टी या सरकारों में कुछ कुर्सिये भी दी हलाके शिक्षा का विरोध तो कुछ मुर्ख
मुस्लमान इन्ही सेकुलरो के प्रभाव में आकर आजादी के पहले से भी करते आ रहे थे आजादी
के बाद इन्ही सेकुलरो ने मुसलमानों को शिक्षा से दूर रखने और उनकी पुश्तेनी
जायदादो को कब्ज़े में करने के लिए ज़ोरदार तरीके से काम किया और लगभग तीन दशको के
अंदर ही मुस्लिमो का आर्थिक, शेक्षिक, सामाजिक व राजनितिक पतन कर दिया लेकिन अभी
भी मुस्लिम समुदाय मानसिक रूप से पिछड़ा नही था और न ही वो किसी दबाव में था क्योकि
मुस्लिम समुदाय मानसिक रूप से बहुत ही मज़बूत समुदाय था और विपरीत परिस्थितियों में
भी ज़बरदस्त संघर्ष क्षमता था इसलिए मुस्लिमो को मानसिक रूप से कमज़ोर करने व उन्हें
डराने के लिए सेकुलरो को एक जिन्न कि तलाश थी 90 के
दशक के अंतिम पढ़ाव में ये तलाश पूरी हुयी जब पाकिस्तान में जन्मे भाजपा के लाल
कृषण अडवानी ने बाबरी मस्जिद, राम जन्मभूमि मुद्दे को राजनितिक मुद्दा बनाते हुए
देश को राजनितिक रूप से तीन भागो में विभाजित कर दिया
- पहला हिस्सा भाजपा
के हिंदुत्व के प्रभाव में आने वाला वो सामुदाय रहा जिसने राममंदिर मामले में
सविधान को मानने से खुला इंकार किया और भाजपा का वोट बैंक बना
- दूसरा हिस्सा
राजनीति को धर्म से अलग रखने व देश कि उन्नति चाहने वाला समुदाय बना
- तीसरा हिस्सा
असुरक्षा कि भावना में घिरा व हाशिये पर पड़ा मुस्लिम समुदाय बना
दुनिया के प्राचीन धर्मो में से एक सनातन(वैदिक) धर्म कब हिन्दू धर्म बन गया
ये आज भी एक शोध का विषय बना हुआ है सेकुलर सरकारों की शिथिलता या मूक समर्थन ने
हिन्दुव को खूब हवा दी और देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए प्रयास तेज हो गए
देश में लगातार होने वाले साम्प्रदायिक दंगो में सबसे ज्यादा इज्ज़त, जान व माल का
नुकसान मुस्लिम समुदाय को ही होता रहा और देश में जगह जगह होने वाले बम्ब धमको में
भी मुस्लिम समुदाय के लोगो को ही आरोपी बनाया गया लेकिन महान देशप्रेमी देश के लिए
शहीद होने वाले शहीद हेमंत करकरे की जाँच में देश में हुए प्रमुख धमाको का
ज़िम्मेदार भगवा आतंकवाद की पोल खुलनी शुरू हुयी और इसके कई सरगना गिरफ्तार हुए लेकिन
देश कि बदकिस्मती रही कि हेमंत करकरे कि आतंकवादियों ने हत्या कर दी गयी
गुजरात में मुस्लिमो का सामूहिक नरसंहार हुआ जिसके इलज़ाम तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगते रहे हालाँकि बाद में उन्हें क्लीन चिट भी मिल गयी लेकिन नैतिक तौर पर प्रदेश कि सरकार ही प्रदेश में होने वाले हर नरसंहार कि ज़िम्मेदार मानी जाती है क्योकि सरकार कि ज़िम्मेदारी होती है कि वह प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाये रखे व सभी नागरिको के उत्थान के लिए काम करे लेकिन भाजपा नेता नरेंद्र मोदी कि सरकार इन दोनों ही जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम रही उस समय देश में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा था कि नरेंद्र मोदी अपने राजधर्म को निभाने में विफल रहे और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने दंगो को क्रिया कि प्रतिक्रिया बताया था इन नरसंहारो पर कभी अफ़सोस ज़ाहिर नही कर सके हलाकि देश के विभन्न हिस्सों में भी मुस्लिमो का सेक्युलर सरकारों के शासन काल में ही नरसंहार हुआ लेकिन सेक्युलर सरकारे होने के कारण उन नरसंहारो पर न तो ज्यादा हो हल्ला हुआ और न ही सरकारों को ज़िम्मेदार माना गया गुजरात दंगो पर सेक्युलर हमेशा हल्ला मचाकर मुस्लिमो को वोट बैंक बनाये रखने कि निति पर काम करते रहे और मुस्लिम समुदाय भी दर कर वोट बैंक ही बना रहा और सेकुलरो के ज़रिये नरेंद्र मोदी कि कट्टर हिन्दुत्ववादी छवि को बार कौसा गया जिससे नरेंद्र मोदी कि हिंदुत्व छवि का ज़ोरदार तरीके से प्रचार होता गया दूसरी और नरेंदर मोदी को अलाप्संख्यको समुदाय के बीच एक डरावने जिन्न कि तरह दर्शाया मुस्लिम समुदाय को वोट बैंक बनाये रखने के लिए कोशिशे जारी रही लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावो में सेकुलरो कि शर्मनाक हार हुयी व नरेंद्र मोदी में कुल पड़े वोट में से 31% वोट देकर जनता ने नए प्रधान मंत्री के रूप में चुना इन चुनावो में दो बाते हेरान करने वाली हुयी पहले देश कि अधिकांश जनता ने कट्टर हिन्तुव कि छवि वाले नेता को देश का प्रधानमंत्री चुना और दूसरी और मुस्लिमो वोटो कि अहमियत को भाजपा सेकुलरो कि सहायता से ख़त्म करने में कामयाब रही और आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि मुस्लिम वोट जो हमेशा किसी को हराने के लिए ही पड़ता रहा था इस बार नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने में कामयाब न हो सका और साथ ही मुस्लिम वोतोका वजूद भी शुन्य हो गया और ये भरम भी टूट गया कि मुस्लिम किसी को भी जीतने से रोक सकते है या हरा सकते है लेकिन इस नतीजो से एक बात साफ़ खुल कर सामने आई कि मुस्लिम समुदाय को किसी को हराने से ज्यादा ज़रूरत खुद को मज़बूत करके खुद के दम पर ही सत्ता में हिस्सेदारी लेनी चाहिए और अपनी उन्नति के लिए अपने ही समुदाय को अगुवाई सोप कर अपने ही दम पर सत्ता के दरवाजों के दरवाजों पर दस्तक देनी चाहिए क्योकि अब
जिस डर का नाम लेकर सेक्युलर मुस्लिमो को वोट बैंक बनाये रहते थे वो डर अब सत्ता
में आचुका है और इससे ज्यादा कुछ हो भी नही सकता था अब डर खत्म हो चूका है
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