बुधवार, 11 सितंबर 2013

हिंदुत्व की प्रयोगशाला है उत्तर प्रदेश


प्रदेश को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बना दिया है सपा सरकार ने - रिहाई मंच
जिस तरह मुजफ्फरनगर और उसके आस पास के इलाकों में पिछले 15 दिनों से सांप्रदायिक हिंसा और तनाव जारी है उससे साफ हो जाता है कि राज्य मशीनरी की इन दंगों को रोकने में कोई दिलजस्पी नही थी और उसने स्थिति को इस हद तक भयावह होने दिया कि उसमें सरकारी हिसाब से लगभग 50 लोग मारे गये। इन हत्याओं के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रदेश सरकार जिम्मेदार है जिसने पिछले
दिनों भाजपा के साथ मिलकर 84 कोसी परिक्रमा के बहाने दंगा फैलाने की कोशिशों को जनता द्वारा नकार दिये जाने के बाद भाजपा के साथ मिलकर बदले की भावना के तहत जनता को दंगों की आग में झोंका है। जिससे समझा जा सकता है कि आरएसएस के हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर अमल करने के लिए यह सरकार किस हद तक बेताब हो गयी है। 
उपरोक्त बातें रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने रिहाई मंच के अनिश्चितकालीन धरने को संबोधित करते हुए सोमवार को कहीं।

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जिस तरह मुजफ्फरनगर की घटनाओं के बाद शासन और प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने की बात कर रहे हैं उससे साबित हो जाता है कि अव्वल तो उनके बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूरी तरह से अक्षम साबित हो गये हैं और दूसरे यह कि स्थिति को अपने नियंत्रण में लेकर उन्होंने साफ कर दिया है कि लोकतंत्र में उनकी कोई आस्था नही है और दंगे जैसे संकट को वे अपना पारिवारिक संकट मान रहे हैं। जबकि शासन और प्रशासन को तलब करने और उसे अपने नियंत्रण में लेने का कोई संवैधानिक अधिकार उन्हें नहीं है क्योंकि वे सिर्फ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता और एक सांसद हैं। शासन प्रशासन संभालने की उनकी कोई संवैधानिक हैसियत नही है। उन्हांेने कहा कि जिस तरह से गांवों तक दंगा फैला है वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। इससे समझा जा सकता है कि सपा सरकार की राज्य मशीनरी ने किस तरह से मुजफ्फरनगर को सांप्रदायिकता की प्रयोगशाला बना दिया है।
धरने को संबोधित करते हुए इंडियन नेशनल लीग के मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगों ने मुलायम की 20 साल की छिपी हुई सांप्रदायिक राजनीति को अवाम के बीच नंगा कर दिया है। जब भी मुलायम की सरकार रही उन्हांेने भाजपा के साथ मिलकर सूबे को दंगे की आग में झोंक कर भाजपा को मजबूत किया और प्रदेश के मुसलमानों को भाजपा का भय दिखा कर वोट लेते रहे। यही उन्हांेने अपनी पहली हुकूमत 1989 के दरम्यान भी किया था और अपने बेटे की डेढ़ साल की इस हुकूमत में भी यही कर रहे हैं। उन्होने सपा  मुखिया से पूछा कि वरुण गांधी पर से मुकदमा हटाकर, अस्थान कांड में तोगडि़या पर मुकदमा न दर्ज करके, फर्रुखाबाद में विश्व हिन्दू परिषद और संघ परिवार के सांप्रदायिक आतंकवादियों पर से मुकदमें वापस लेकर, कानपुर में 1992 में हुए सांप्रदायिक दंगों के खलनायक तत्कालीन एसएसपी एसी शर्मा जिनकीआपराधिक भूमिका की जांच के लिए माथुर कमीशन का गठन किया गया था उस पर कार्रवायी करने के बजाय उसे सूबे के पुलिस का मुखिया बनाने और पिछले चुनाव में राजनाथ के खिलाफ उम्मीदवार न खड़ा करने के बावजूद वे किस मुंह से अपने को सेक्यूलर बताते हैं। मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि अगर सपा सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ने के प्रति सचमुच प्रतिबद्ध है तो उसे 89 से लेकर अब तक की अपनी सरकारों में हुए सभी दंगों पर श्वेत पत्र लाना चाहिए।
धरने को संबोधित करते हुए आजमगढ़ रिहाई मंच के नेता मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई और कानून व्यवस्था के मसले पर घिरी  सरकार ने मानसून सत्र के दौरान जनता को गुमराह करने के लिए भाजपा के साथ मिलकर मुजफ्फरनगर को दंगों की आग में झोंका है। उन्हंोने कहा कि इन दंगों में जिस तरह पिछड़ी और दलित जातियां मुसलमानों के खिलाफ हमलावर हुई हैं उससे मुलायम की तथाकथित सामाजिक न्याय की राजनीति का असली चेहरा बेनकाब हो गया है। उन्होंने कहा कि रिहाई मंच 16 सितंबर से शुरू होने वाले डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन में सपा की सांप्रदायिक राजनीति को बेनकाब कर देगा। उन्हांेने आवाम से अपील करते हुए कहा कि निर्दोषों के खून से सियासी खेल खेलने वाली सरकार को घेरने के लिए आंदोलन में ज्यादा से ज्यादा तादात में शामिल हों।
धरने को संबोधित करते हुए मुस्लिम मजलिस के जैद अहमद फारूकी और भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोईद अहमद ने कहा कि जिस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दंगे को फैलाने के लिए अफवाह नुमा फर्जी खबरें सांप्रदायिक शीर्षकों के साथ मीडिया द्वारा छापी जा रही हैं उस पर प्रेस परिषद को तत्काल कार्यवाई करनी चाहिए। उन्हंेने कहा कि दंगों की सपाई राजनीति के खिलाफ रिहाई मंच 11 सितंबर को शहर के बुद्धिजीवियों के बीच रणनीति बनायेगा और अवाम को जागरूक करेगा। उन्हांेने कहा कि राज्यपाल आज केन्द्र सरकार को दंगों को नियंत्रित कर पाने में विफल होने के लिए प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए पत्र लिख रहे हैं जबकि रिहाई मंच ने राज्यपाल को ज्ञापन देकर कोसी कलां, फैजाबाद, बरेली, अस्थान में हुए दंगों के दौरान ही प्रदेश सरकार को तलब करने की मांग की थी। अगर राज्यपाल महोदय उस समय चेत गये होते तो सपा सरकार द्वारा प्रायोजित इस नरसंहार को रोका जा सकता था। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने अपने खनन माफिया को बचाने के लिए दुर्गा शक्ति नागपाल को तो तुरंत साम्प्रदायिक बताते हुये निलम्बित कर दिया था लेकिन मुजफ्फरनगर के दोषियों पुलिस अधिकारियों पर पंद्रह दिन बाद भी सरकार कोई कदम उठाने में आखिर क्यों हिचकिचा रही है। उसे बताना चाहिए कि क्या दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवायी नहीं करने का भी समझौता आरआरएस और भाजपा के साथ हुआ है।
इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता इसहाक नदवी ने कहा कि अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम के अधूरे साम्प्रदायिक सपनों को पूरा करने का प्रयास किया है। अपने चुनावी वादों को पूरा करने और जेलों में आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों को छोड़ने के बजाए बेगुनाहों को पकड़ने और उनको कत्ल करने का काम शुरू कर दिया है। जब से यह सरकार बनी है कोई ऐसा हफ्ता नहीं गुजरा है
जिसमें कहीं न कहीं साम्प्रदायिक हिंसा न हुयी हो, मुजफ्फनगर भी उसी की एक कड़ी है। साम्प्रदायिक तत्वों को खुली छूट दे कर और पीडि़तों को मुआवजे और सुरक्षा का झूठा झांसा दे कर यह सरकार एक तीर से दो शिकार करना चाहती है। जो अब नहीं होगा क्योंकि जनता सपा के असली चेहरे को पहचान चुकी है।
यूपी की कचहरियों में 2007 में हुए धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने की मांग को लेकर रिहाई मंच का धरना सोमवार को 111 वें दिन भी लखनऊ विधानसभा धरना स्थल पर जारी रहा।
1989 से अब तक की सपा सरकारों में हुए दंगांे पर श्वेतपत्र जारी करें मुलायम मुलायम बताएं कि सौ से अधिक दंगे कराने के बाद भी वे सेक्यूलर कैसे- रिहाई मंच

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