मुस्लिम विरोधी साम्प्रदयिक हिंसा
प्रभावित इलाकों में कानून-व्यवस्था बहाल करने में
सरकार पूरी तरह विफल हो चुकी है। वांछितों को पकड़ने की हिम्मत पुलिस
नहीं कर पा रही है। हिंसा में शामिल लोगों के हौसले इतने बुलंद हैं कि
गांव की महिलाएं पुलिस पर पथराव करके उन्हें भी नहीं घुसने दे रही हैं।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज नहीं रह
गयी है। यह आरोप शामली और मुजफ्फरनगर में साम्प्रदायिक हिंसा प्रभावित
इलाकों का दौरा कर रहे रिहाई मंच जांच दल ने लगाया है। रिहाई मंच जांच दल ने पाया
कि लिसाढ़ गांव जहां मुसलमानों के सैकड़ों घर पूरी तरह नष्ट कर दिए गए हैं स्थानिय लेखपाल और एसडीएम की मिली भगत से प्रशासन ने पीडितों के क्षति का आंकड़ा पीडितों के फर्जी हस्ताक्षर करके तथा कुछ मामलों में कैम्प में चोरी छुपे जाकर पीडितों से हस्ताक्षर करवाकर
तैयार कर लिए हैं। जबकि नियमतः पीडितों की मौकाए वारदात पर उपस्थिति के उपरांत ही इसे तैयार किया जाता है। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार किस कदर पीडितों को न्याय से वंचित रखने और इस जघन्य अपराध को छुपाने के लिए लीपापोती करने पर उतारू है। रिहाई मंच ने आरोप लगाया कि मलकपुर और खुरगान कैम्पों में पीडितों के सर्वे फार्म पर हमलावरों का नाम बताने के बावजूद उन्हें अज्ञात लिखा जा रहा है। रिहाई मंच
जांच दल को ग्राम फुगाना, तहसील बुढ़ाना के अब्दुल
गफ्फार ने बताया कि पिछले दिनों 23 सितम्बर को जब वे अपने गांव पुलिस के साथ गए थे तब भी उन्हें इस्माईल पुत्र हकीम जी के घर के बाहर तीन लाशें पड़ी हुयी मिलीं जो इतनी सड़ चुक थीं कि उन्हें पहचान पाना मुश्किल था। लेकिन पुलिस ने उन्हें उठाने के बजाए उसी तरह छोड़ दिया। अब दुबारा अपने गांव कभी न लौटने की बात कहने वाले अब्दुल गफ्फार ने बताया कि गांव के ही विनोद पुत्र मंगा, अरविंद डाक्टर, रामकुमार पुत्र ओम प्रकाश पटवारी और सुनील पुत्र बीरम सिंह ने उनके सामने ही उनके दादा इस्लाम को गड़ासे से तीन टुकड़े काट दिए और उनकी बारह वर्षीय बेटी और भाई नसीम को भाला और गोली मारकर बुरी तरह घायल कर दिया। इस हादसे के बाद से ही अब्दुल गफ्फार की दादी जो अंधी हैं गायब हैं। मुसलमानों के विरूद्ध इन संगठित हमलों में हर गांव की तरह अब्दुल गफ्फार के ग्राम प्रधान थम्मू जाट भी मुख्य भूमिका में था। गफ्फार ने जांच दल को बताया कि नंगला मदौड़ की महापंचायत से लौटने के बाद 7 सितम्बर की शाम को ही ग्राम
खरड और फुगाना के बीच स्थित नहर के पास थम्मू प्रधान के नेतृत्व में
जाटों और हिंदुओं की दूसरी जातियों की मीटिंग हुयी थी। जिनमें लगभग
तीन सौ लोग इकठ्ठे हुये थे जहां दूसरे दिन मुसलमानों के जनसंहार की रणनीति
बनी थी। एक पूरी रात गन्ने की खेत में छुप कर जान बचाने वाले गफ्फार ने
बताया कि 8 सितम्बर की सुबह दस बजे हमलावरों की एक भीड़ मस्जिद में घुस गयी और तोड़-फोड़ करने के बाद वहां शराब पी और उसके बाद आगजनी और हत्यों का खेल शुरू करने से पहले नाजिर पुत्र गेंदा के घर के सामने डाढ़ी, टोपी और कुर्ता वाला मुसलमानों का पुतला फूंका और नारेबाजी
की। इसके बाद सुलेमान पुत्र मुंशी, आसू पुत्र यासीन, इस्लाम पुत्र नियादर की सरेआम हत्या कर दी गयी।
इसी तरह मलकपुर कैम्प में रह रहे लाक गांव के खुरशीद पुत्र दीनू ने रिहाई मंच जांच दल के सदस्यों अधिवक्ता असद हयात, राजीव यादव, शरद जायसवाल, गुंजन सिंह, लक्ष्मण प्रसाद, शाहनवाज आलम, तारिक शफीक और आरिफ नसीम को बताया कि 8 सितम्बर को उनके गांव के वहीद लीलगर पुत्र
सेराजू, ताहिर लीलगर पुत्र वाहिद, रईसा पत्नी अख्तर, अख्तर पुत्र वाहिद, पम्पू पुत्री रईसा, सेराजो पत्नी वहीद धोबी, आसू पुत्र इकबाल धोबी को पहले जिंदा जला दिया गया और उसके बाद कुछ लाशों को एक के उपर एक रख कर ट्रैक्टर से रौंद गया। इनके अलावा 70 वर्षीय अबलू लोहार और 70 वर्षीय कासिम डोम पुत्र जीवन जो चारों की गठरी लेकर आ रहे थे की भी हत्या कर दी गयी। रिहाई मंच जांच दल को पीडितों ने बताया कि महिलाओं और बच्चों के लिए यदि विशेष मेडिकल सुविधा की व्यवस्था नहीं की गयी तो स्थिति बिगड़ सकती है क्योंकि बहुत सारी महिला गर्भवती हैं और बहुत से बच्चों का जन्म इन कैम्पों में ही हुआ है जिन्हें विशेष पौष्टिक आहार और देख रेख की जरूरत पड़ती है। जांच दल को पीडितों ने बताया कि मौसम में आ रहे परिवर्तन और रात को ओस पड़नी शुरू होने के चलते खुले आसमान के नीचे लगे इन कैम्पों में रहना मुश्किल होता जा रहा है। रिहाई मंच ने मांग की है कि सरकार सभी पीडितों को बीपीएल कार्ड के दायरे में लाते हुये तत्काल उन्हें कांशीराम/लोहिया आवास एंव ग्राम समाज की भूमि आवंटित किया जाए और मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से घर से बेघर हुये लोगों के लिए विशेष व्यवस्था की जाए। रिहाई मंच ने मांग की है कि इन योजनओं के तहत तत्काल संजीदगी से व्यवस्था की जाए क्योंकि यदि अभी से प्रक्रिया शुरू होगी तब जाकर कहीं दो-तीन महीने में इसे पूरा किया जा सकता है। नहीं तो पीडितों को डेढ़ महीने बाद शुरू होने वाली ठंड में हालात और खराब हो जाएंगे। रिहाई मंच
के प्रवक्ताओं राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि सरकार को चाहिए कि पूरे मामले
की सीबीआई जांच कराये।
मुजफ्फरनगर-शामली में मुसलमानों पर हुये संगठित हमलों के दोषियों को बचाने में लगी सरकार ने अपने पेड उलेमाओं को मैदान में उतार कर मुसलमानों को बरगलाने की कोशिश शुरू कर दी है। कुछ तथाकथित उलेमा पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर खास कर राहत शिविरों में जाकर मुसलमानों में अमन का पैगाम बांटने का नाटक कर मुस्लिम विरोधी हमले कराने वाली सरकार को क्लीन चिट देने में लगे हैं जैसे मुसलमानों पर हुये इस जुल्म की वजह वे खुद हों। उलेमा संगठन हिंसा पीडितों को स्वयं पुर्नवास की व्यवस्था करने की बात करके हिंसा पीडित मुसलमानों के प्रति सरकार की जवाबदेही को कम कर परोक्ष तौर पर सरकार को मदद पहंुचाने में लगे हैं। जबकि अपने नागरिकों की सुरक्षा और पुर्नवास की जिम्मेदारी सरकार की है। ये बातें रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने लखनऊ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहीं। उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह आतंकवाद के फर्जी आरोप में बंद खालिद मुजाहिद जिसे निमेष कमीशन की रिपोर्ट भी बेकसूर बताती है की पुलिस द्वारा की गयी हत्या के बाद भी यही सरकारी उलेमा खालिद के चचा को 6 लाख रूपये देकर उनकी हत्या को बिमारी से हुयी मौत बताने की कोशिश कर रहे थे। जिसे अवाम ने बखूबी समझ लिया और खालिद की इंसाफ की लड़ायी को जारी रखा। इसी तरह अवाम को मुजफ्फरनगर और शामली में सरकार की सरपरस्ती में हुयी मुसलिम विरोधी हिंसा में सरकारी उलेमाओं के बहकावे में न आते हुये इंसाफ की लड़ायी को जारी रखना होगा।
वहीं मुफ्फरनगर और शामली में मुस्लिम विरोधी संगठित हिंसा की जांच करने आए रिहाई मंच जांच दल ने कहा कि जिस तरह जाट गांवों में महिलाओं द्वारा हथियारबंद होकर पुलिस बल को गांव में न घुसने देने और घुसने पर उनके घुटने काट देने की धमकी खुलेआम देने के बावजूद उनपर मुकदमे दर्ज न कर के सरकार मुसलमानों में भय का माहैल बनाए रखना चाहती है। रिहाई मंच के प्रवक्ताओं राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि पूरे इलाके में धारा 144 लगी हुयी है। बावजूद इसके भाजपा नेता हुकूम सिंह जिस तरह गांव-गांव घूम कर पंचायतों में भाषण देकर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगल रहे हैं उससे साफ हो जाता है कि सपा सरकार जान बूझ कर हुकूम सिंह को हीरो बनने का अवसर दे रही है। जिससे समझा जा सकता है कि सपा और भाजपा के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए आपसी समझौता हुआ है। रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि जिस तरह 7 सितम्बर की नंगला मदौड़ की महापंचायत जिसकी इजाजत नहीं थी और जो धारा 144 लागू होने के बाद हुयी थी से एक दिन पहले 6 सितम्बर को हुकूम सिंह के रिश्तेदार डीजीपी देवराज नागर ने मुजफ्फरनगर का दौरा किया उससे इस बात की आशंका और प्रबल हो जाती है कि पूरा ड्रामा पहले से तय था जिसमें डीजीपी की भूमिका अहम रही है। उन्होंने मांग की कि डीजीपी देवराज नागर को तत्काल निलंबित किया जाए साथ ही हिंसा प्रभावित गांवों के प्रधानों और स्थानिय थानों के पुलिस अमले के फोन डिटेल्स को जांचा जाए क्योंकि पीडित मुसलमानों ने कई बार अपने ग्राम प्रधानों और पुलिस अधिकारियों से अपनी सुरक्षा की गुहार लगायी थी जिसे उनकी तरफ से बहुत भद्ये तरीके से गालीयां देते हुये इंकार कर दिया गया था।
इस बीच रिहाई मंच जांच दल के सदस्यों अधिवक्ता असद हयात, लक्ष्मण प्रसाद, तारिक शफीक, आरिफ नसीम, राजीव यादव और शाहनवाज आलम को कांधला कैम्प में शरण लिए लिसाढ़ गांव के 28 वर्षीय शकील अहमद सैफी पुत्र सूबेदीन ने बताया कि हमारा खानदान पिछले तीन- चार सौ सालों से गांव के जाट किसानों की सेवा करता था। उनकी किसानी के ओजार जैसे गड़ासे, कुदाल सब हम ही बनाते थे उनके खेतों में काम भी हम ही करते थे। लेकिन अचानक सदियों पुराना यह रिश्ता उन लोगों ने एक दिन में ही खत्म कर दिया। शकील ने बताया कि गांव के सारे मुसलमानों ने मिल कर अजीत सिंह को मुखिया बनाने के लिए वोट दिया था। लेकिन उसी मुखिया ने उनको मारने के लिए झुंड लेकर उन पर हमला कर दिया। अपने 25 परिजनों के साथ गन्ने के खेत में दो दिनों तक छुप कर जान बचाने वाले शकील ने बताया कि हमलावर उन्हें ढ़ूढ़ने के लिए कई बार गन्ने के खेतों में आते थे जिनके साथ पुलिस भी रहती थी लेकिन किस्मत अच्छी थी कि वे बच गए। वे कहते हैं कि शायद छोटे बच्चे भी समझ गए थे कि रोना नहीं है, वो चुप छुपे रहे। अगर बच्चे रोए होते तो हम सब मार दिये गये होते। इसी गांव के राशिद पुत्र सुबराती ने बताया कि 7 सितम्बर को ही उन्होंने प्रधान के घर के बाहर पुलिस अधिकारियों की भीड़ देखी थी। लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि पुलिस ऐसा करेगी। वहीं कांधला रिलीफ कैम्प की व्यवस्था से जुड़े मोहम्मद सलीम ने लखनऊ से कुछ उलेमाओं द्वारा अमन कारवां लेकर कैम्प में आने पर टिप्पणी करते हुये जांच दल को बताया कि हम मुसीबत के मारे मुसलमानों के बीच इन लोगों द्वारा अमन का पैगाम लेकर आने से हमें बहुत हैरानी हो रही है, उन्हें अगर अमन का पैगाम ही बांटना है तो उन जाटों के गांवों में जाएं जहां मुसलमान काटे और जलाए गए हैं। वहीं रिहाई मंच जांच दल को जोगिया खेड़ा राहत शिविर में रह रहे फुगाना गांव के 55 वर्षीय मान अली पुत्र फतेहदीन शेख ने बताया कि 8 सितम्बर को सुबह 9-10 बजे के करीब पूर्व प्रधान हरपाल पुत्र नहार, विनोद पुत्र मंगा जाट, अरविंद डाक्टर पुत्र रामफल, उदयबीर पुत्र बलजोरा, सुनील पुत्र बीरम सिंह ने उनके घर के बाहर इकठ़ठे हो कर मान अली और दूसरे मुसलमानों से कहा कि वे गांव छोड़ कर न जाएं, वे लोग उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं। जब वे रूक गए तभी आधे घंटे के अंदर ही मौजूदा प्रधान थाम सिंह उर्फ थम्मू की अगुवायी में हथियारों से लैसे बड़ी भीड़ उनकी तरफ बढ़ी जिसे देखते ही मान अली घर की ओर भागे जिन्हें पकड़ने की कोशिश उन्हें समझाने आए लोगों ने की। जिसमें बूढ़े होने के चलते मान अली के चाचा 65 वर्षीय इस्लाम उनके कब्जे में आ गए जिन्होंने उन्हें गड़ासे से काट डाला। मान अली ने जांच दल को बताया कि हमलावरों में शामिल विनोद पुत्र मंगा, संजीव पुत्र प्रहलाद और अरविंद डाक्टर पुत्र रामफल ने मुस्तकीम शेख की पत्नी तस्मीम के साथ बलात्कार किया।
वहीं मुफ्फरनगर और शामली में मुस्लिम विरोधी संगठित हिंसा की जांच करने आए रिहाई मंच जांच दल ने कहा कि जिस तरह जाट गांवों में महिलाओं द्वारा हथियारबंद होकर पुलिस बल को गांव में न घुसने देने और घुसने पर उनके घुटने काट देने की धमकी खुलेआम देने के बावजूद उनपर मुकदमे दर्ज न कर के सरकार मुसलमानों में भय का माहैल बनाए रखना चाहती है। रिहाई मंच के प्रवक्ताओं राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि पूरे इलाके में धारा 144 लगी हुयी है। बावजूद इसके भाजपा नेता हुकूम सिंह जिस तरह गांव-गांव घूम कर पंचायतों में भाषण देकर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगल रहे हैं उससे साफ हो जाता है कि सपा सरकार जान बूझ कर हुकूम सिंह को हीरो बनने का अवसर दे रही है। जिससे समझा जा सकता है कि सपा और भाजपा के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए आपसी समझौता हुआ है। रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि जिस तरह 7 सितम्बर की नंगला मदौड़ की महापंचायत जिसकी इजाजत नहीं थी और जो धारा 144 लागू होने के बाद हुयी थी से एक दिन पहले 6 सितम्बर को हुकूम सिंह के रिश्तेदार डीजीपी देवराज नागर ने मुजफ्फरनगर का दौरा किया उससे इस बात की आशंका और प्रबल हो जाती है कि पूरा ड्रामा पहले से तय था जिसमें डीजीपी की भूमिका अहम रही है। उन्होंने मांग की कि डीजीपी देवराज नागर को तत्काल निलंबित किया जाए साथ ही हिंसा प्रभावित गांवों के प्रधानों और स्थानिय थानों के पुलिस अमले के फोन डिटेल्स को जांचा जाए क्योंकि पीडित मुसलमानों ने कई बार अपने ग्राम प्रधानों और पुलिस अधिकारियों से अपनी सुरक्षा की गुहार लगायी थी जिसे उनकी तरफ से बहुत भद्ये तरीके से गालीयां देते हुये इंकार कर दिया गया था।
इस बीच रिहाई मंच जांच दल के सदस्यों अधिवक्ता असद हयात, लक्ष्मण प्रसाद, तारिक शफीक, आरिफ नसीम, राजीव यादव और शाहनवाज आलम को कांधला कैम्प में शरण लिए लिसाढ़ गांव के 28 वर्षीय शकील अहमद सैफी पुत्र सूबेदीन ने बताया कि हमारा खानदान पिछले तीन- चार सौ सालों से गांव के जाट किसानों की सेवा करता था। उनकी किसानी के ओजार जैसे गड़ासे, कुदाल सब हम ही बनाते थे उनके खेतों में काम भी हम ही करते थे। लेकिन अचानक सदियों पुराना यह रिश्ता उन लोगों ने एक दिन में ही खत्म कर दिया। शकील ने बताया कि गांव के सारे मुसलमानों ने मिल कर अजीत सिंह को मुखिया बनाने के लिए वोट दिया था। लेकिन उसी मुखिया ने उनको मारने के लिए झुंड लेकर उन पर हमला कर दिया। अपने 25 परिजनों के साथ गन्ने के खेत में दो दिनों तक छुप कर जान बचाने वाले शकील ने बताया कि हमलावर उन्हें ढ़ूढ़ने के लिए कई बार गन्ने के खेतों में आते थे जिनके साथ पुलिस भी रहती थी लेकिन किस्मत अच्छी थी कि वे बच गए। वे कहते हैं कि शायद छोटे बच्चे भी समझ गए थे कि रोना नहीं है, वो चुप छुपे रहे। अगर बच्चे रोए होते तो हम सब मार दिये गये होते। इसी गांव के राशिद पुत्र सुबराती ने बताया कि 7 सितम्बर को ही उन्होंने प्रधान के घर के बाहर पुलिस अधिकारियों की भीड़ देखी थी। लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि पुलिस ऐसा करेगी। वहीं कांधला रिलीफ कैम्प की व्यवस्था से जुड़े मोहम्मद सलीम ने लखनऊ से कुछ उलेमाओं द्वारा अमन कारवां लेकर कैम्प में आने पर टिप्पणी करते हुये जांच दल को बताया कि हम मुसीबत के मारे मुसलमानों के बीच इन लोगों द्वारा अमन का पैगाम लेकर आने से हमें बहुत हैरानी हो रही है, उन्हें अगर अमन का पैगाम ही बांटना है तो उन जाटों के गांवों में जाएं जहां मुसलमान काटे और जलाए गए हैं। वहीं रिहाई मंच जांच दल को जोगिया खेड़ा राहत शिविर में रह रहे फुगाना गांव के 55 वर्षीय मान अली पुत्र फतेहदीन शेख ने बताया कि 8 सितम्बर को सुबह 9-10 बजे के करीब पूर्व प्रधान हरपाल पुत्र नहार, विनोद पुत्र मंगा जाट, अरविंद डाक्टर पुत्र रामफल, उदयबीर पुत्र बलजोरा, सुनील पुत्र बीरम सिंह ने उनके घर के बाहर इकठ़ठे हो कर मान अली और दूसरे मुसलमानों से कहा कि वे गांव छोड़ कर न जाएं, वे लोग उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं। जब वे रूक गए तभी आधे घंटे के अंदर ही मौजूदा प्रधान थाम सिंह उर्फ थम्मू की अगुवायी में हथियारों से लैसे बड़ी भीड़ उनकी तरफ बढ़ी जिसे देखते ही मान अली घर की ओर भागे जिन्हें पकड़ने की कोशिश उन्हें समझाने आए लोगों ने की। जिसमें बूढ़े होने के चलते मान अली के चाचा 65 वर्षीय इस्लाम उनके कब्जे में आ गए जिन्होंने उन्हें गड़ासे से काट डाला। मान अली ने जांच दल को बताया कि हमलावरों में शामिल विनोद पुत्र मंगा, संजीव पुत्र प्रहलाद और अरविंद डाक्टर पुत्र रामफल ने मुस्तकीम शेख की पत्नी तस्मीम के साथ बलात्कार किया।
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