पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली समेत विभिन्न जनपदो
में हुई मुस्लिम समाज के खिलाफ हिंसा को दंगा नहीं कहा जा सकता, यह सांप्रदायिक हिन्दुत्वादी तत्वों, दबंग जाटों के किसान संगठनों की प्रशासनिक मिलीभगत के साथ मुसलमानों पर की
गई एक तरफा हमले की कार्यवाई है। जो कई मायनों में गुजरात 2002 से भी ज्यादा विभत्स है। इस एकतरफा हमले के बाद मुसलमानों को
इंसाफ देने के बजाए सरकार की कोशिश मारे गए मुसलमानों की संख्या को कमतर
बताने और बलात्कार जैसी घटनाओं को दबाने की रही। यह बातें रिहाई मंच जांच दल के द्वारा शामली के कांधला, कैराना, मलकपुर के सांप्रदायिक हिंसा से पीडि़त
मुसलमानों के रिलीफ कैंपों का दौरा करने के बाद जारी बयान में कही गईं।
जांच दल में शामिल शरद जायसवाल, शाहनवाज आलम, लक्ष्मण प्रसाद, गुंजन सिंह और राजीव यादव ने कहा कि सरकार मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत और मेरठ को मिलाकर सिर्फ 50 मौतों का झूठा आंकड़ा प्रचारित करवा रही है। जबकि मरने वालों की संख्या इससे काफी ज्यादा है। जबकि ऐसी लाशों की तादाद भी काफी ज्यादा हैं जिनको मारने के बाद साक्ष्य मिटाने के लिए जला दिया गया वहीं बहुत सारे लोग अब भी लापता हैं जिनके बारे में उनके सगे सम्बंधियों और गांव वालों का मानना है कि वे लोग भी मारे जा चुके हो सकते हैं।
रिहाई मंच ने दावा किया कि सरकार और मीडिया का एक हिस्सा यह प्रचारित करने में लगा है कि हिंसा का दौर 7 सितम्बर को जाटों के महा पंचायत से लौटने के बाद उन पर मुसलमानों की तरफ से किये गये हमले के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप शुरू हुयी। जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। मुसलमानों के खिलाफ संगठित हमलों की तैयारी पहले से थी। मुसलमानों पर संगठित हिंसा का दौर 5 सितम्बर को लिसाढ़ गांव में 7 सितम्बर की नांगला मंदोड में होने व़ाली महापंचायत की तैयारी के लिए हुई पंचायत के दौरान ही 52 गांवों के जाटों के मुखिया हरिकिशन बाबा ने मुसलमानों को सबक सिखाने का आह्वान कर शुरू कर दिया था। जिसके बाद 3-4 बजे शाम को ट्रालियों में भरकर वापस लौटते समय मुसलमानों को गांलियां देते हुए जान से मारने की धमकी दी गयी। 6 सितंबर की शाम को लिसाढ़ के ही मोहम्मद मंजूर को जाट समुदाय के हिन्दुत्वादी अपराधी देवेन्द्र पुत्र चाही ग्राम लिसाढ़ ने यह कहते हुए चाकू मार दी कि मुसलमानों को यहां रहने नहीं देंगे। लिसाढ़ में जनता इंटर कालेज के पास स्थित शिवाला मंदिर में हिंदुत्वादी संगठनों के लोगों ने महीनों पहले से दस-दस रुपए की पर्ची काटकर सदस्य बनाने और लगभग पांच सौ तलवारें बांटने का काम किया गया था। जिसकी शिकायत भी गांव के मुसलानों द्वारा पुलिस को लिखित में दी गयी थी। दूसरे दिन नंगला मदोड़ में होने वाली महापंचायत जिसे हिन्दुत्वादी संगठनों, रालोद और भारतीय किसान यूनियन का समर्थन प्राप्त था, में खुले हथियारों जैसे बंदूक, हसिया, गड़ासा, तलवार, देशी तमंचे से लैस होकर जाते हुए रास्ते में सुबह 9-10 बजे के करीब बसी गांव के करीब पलड़ा गांव की सात माह की गर्भवती रुकसाना पत्नी रहीस को मार दिया तथा दो अन्य लड़कों को घायल कर दिया तो वहीं पंचायत के दौरान लगभग 12 बजे जब पंचायत में शामिल लोगों को पता चला कि उनके बीच जो बोलेरो गाड़ी किराए पर आई है उसका ड्राइवर मुसलमान है तो ड्राइवर इंसार पुत्र वकील गांव गढ़ी दोलत को गोलियों से छलनी कर दिया गया। इंसार के शरीर से पोस्टमार्टम में 18 गोलियां मिली हैं। इस घटना की एफआईआर कांधला थाने में दर्ज है। पंचायत के बाद लौटते हुए शाम को चार बजे नंगला बुर्ज गांव में गांव के ही असगर पुत्र अल्ला बंदा को घायल किया गया, वहीं 5 बजे तेवड़ा गांव के निवासी फरीद पुत्र दोस्त मोहम्मद को तलवार से हमला करके घायल किया। 6 बजे तेवड़ा के ही सलमान पुत्र अमीर हसन की हत्या तेवड़ा गांव में कर दी गई उसके बाद खेड़ी फिरोजाबाद गांव में लताफत पुत्र मुस्तफा की हत्या हुई, इसी गांव के नज़र मोहम्मद पुत्र मूसा की भी हत्या कर दी गई। इन घटनाओं से साफ है मुसलामानों के खिलाफ संगठित हिंसा महापंचायत में जाते वक्त, पंचायत के दौरान और पंचायत से लौटते वक्त शुरु हो गई थी।
जांच दल ने पाया कि कुटबा, कुटबी गांव में ‘संघ शक्ति’ नाम का संगठन पिछले एक साल से अधिक समय से सक्रिय था। इस संगठन के एजेंडे में जाटों के नेतृत्व मे कमजोर हिन्दू जातियों खासकर झिम्मर (कश्यप) और दलितों को इकट्ठा करना और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलना था। माथे पर ‘ऊं’ निशान वाला सफेद पट्टी बांधने वाले ‘संघ शक्ति’ के लोगों ने महापंचायत से 15 दिन पहले से दिन में एक बार के बजाए दिन में तीन-तीन बार बैंठके करनी शुरू कर दी थीं। जिसका नेतृत्व जाट जाति का प्रधान देवेंद्र करता है। इस गांव में कई मुसलमान मारे गए और गांव के सारे मुसलमान कांधला, कैराना, मलकपुर समेत विभिन्न पीडित शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
रिहाई मंच जांच दल का आरोप है कि सपा सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा पीडित मुसलमानों को न्याय देने के बजाए पूरे मामले की लीपापोती करने में ही पूरी ऊर्जा लगा दी और सुप्रिम कोर्ट में हलफनामा दिया कि पीडितों के लिए बने शिविर सरकार संचालित कर रही है जो बिल्कुल झूठ है। सारे राहत शिविर खुद मुस्लिम समाज व उनकी तंजीमें चला रही हैं। जांच दल को कैराना राहत शिविर के पीडितों ने बताया कि एक दिन प्रशासन के लोग छुपकर दूध बाटंकर कोटा पूर्ती करने की कोशिश की जिसे उन लोगों ने लेने से इंकार कर दिया।
इसी तरह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में झूठ बोला कि सरकार ने कैराना कैम्प में 2700 मुसलमानों की व्यवस्था की है। जबकि हलफनामा देते वक्त इस कैम्प में कुल 9771 लोग थे। कैम्प के संचालक अजमतुल्ला खान ने बताया कि पूरा खर्च स्थानिय मुसलमानों और उनके संगठन उठा रहे हैं। करैना से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मलकपुर राहत शिविर के हालात काफी खराब हैं। हजारों की संख्या में लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं, बरसात के वक्त वहां के हालात काफी खराब हो जाते हैं। सपा नेताओं द्वारा जो दौरे किए जा रहे हैं वो महज कोटा पूर्ती और मीडिया मैनेजमेंट की कोशिश है। जिसकी तस्दीक इससे भी होती है कि कल 23 सितंबर को कांधला राहत शिविर में सपा कुनबे के नेता शिवपाल यादव ने वहां इकट्ठा पीडितों से सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा। वहीं कांधला कैंप के लोगों ने ही बताया कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी मुस्लिम विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए कांधला कैंप में अपनी हिफाजत और इंसाफ के लिए शोर मचा रहे लोगों को यह कहकर शांत कराने की कोशिश की कि आप लोगों ने भी तो हमारी ट्रालियों को तबाह किया है। पीडितों का कहना है जब मुख्यमंत्री ही अपने को हिंदू मानकर बात करेंगे तो बात कैसे बनेगी।
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शाहनवाज आलम व राजीव यादव ने कहा कि पिछले तीन दिन से चल रहे दौरे में पाया गया कि विभिन्न गांवों के जो लोग राहत शिविरों में हैं उनसे उनके परिवार के लोग आज हफ्तों बाद भी बिछड़े हुए हैं इनमें बच्चों व महिलाओं की संख्या काफी है। पीडितों ने यह भी बताया कि जगह-जगह छोटे-छोटे बच्चों व महिलाओं को निशाना बनाया गया है। ऐसे में यह सुनिश्चित नहीं हैं कि वो जिंदा भी हैं। जिस तरह महिलाओं के साथ अभद्रता व उनको कई-कई दिनों तक बंधक बनाने की खबरें सामने आ रही हैं ऐसे में स्पष्ट है कि दंगाईयों ने बलात्कार भी किए है। पर जिस तरीके से जाट समुदाय की दहशत है और दूसरी तरफ प्रदेश सरकार इन मामलों को स्थानीय सपा के नेताओं के जरिए दबाने की कोशिश कर रही है ऐसे में महिलाओं से जुड़े इस गंभीर मुद्दे पर सुप्रिम कोर्ट संज्ञान ले। इन मामलो में राज्य महिला आयोग की आपराधिक चुप्पी को देखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग को तत्काल अपनी तरफ से जांच दल भेजना चाहिए।
मेरी 12 वर्षीय बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार करके उसे काट कर तेजाब से जला दिया गया- वसीला मुकीम
जांच दल में शामिल शरद जायसवाल, शाहनवाज आलम, लक्ष्मण प्रसाद, गुंजन सिंह और राजीव यादव ने कहा कि सरकार मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत और मेरठ को मिलाकर सिर्फ 50 मौतों का झूठा आंकड़ा प्रचारित करवा रही है। जबकि मरने वालों की संख्या इससे काफी ज्यादा है। जबकि ऐसी लाशों की तादाद भी काफी ज्यादा हैं जिनको मारने के बाद साक्ष्य मिटाने के लिए जला दिया गया वहीं बहुत सारे लोग अब भी लापता हैं जिनके बारे में उनके सगे सम्बंधियों और गांव वालों का मानना है कि वे लोग भी मारे जा चुके हो सकते हैं।
रिहाई मंच ने दावा किया कि सरकार और मीडिया का एक हिस्सा यह प्रचारित करने में लगा है कि हिंसा का दौर 7 सितम्बर को जाटों के महा पंचायत से लौटने के बाद उन पर मुसलमानों की तरफ से किये गये हमले के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप शुरू हुयी। जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। मुसलमानों के खिलाफ संगठित हमलों की तैयारी पहले से थी। मुसलमानों पर संगठित हिंसा का दौर 5 सितम्बर को लिसाढ़ गांव में 7 सितम्बर की नांगला मंदोड में होने व़ाली महापंचायत की तैयारी के लिए हुई पंचायत के दौरान ही 52 गांवों के जाटों के मुखिया हरिकिशन बाबा ने मुसलमानों को सबक सिखाने का आह्वान कर शुरू कर दिया था। जिसके बाद 3-4 बजे शाम को ट्रालियों में भरकर वापस लौटते समय मुसलमानों को गांलियां देते हुए जान से मारने की धमकी दी गयी। 6 सितंबर की शाम को लिसाढ़ के ही मोहम्मद मंजूर को जाट समुदाय के हिन्दुत्वादी अपराधी देवेन्द्र पुत्र चाही ग्राम लिसाढ़ ने यह कहते हुए चाकू मार दी कि मुसलमानों को यहां रहने नहीं देंगे। लिसाढ़ में जनता इंटर कालेज के पास स्थित शिवाला मंदिर में हिंदुत्वादी संगठनों के लोगों ने महीनों पहले से दस-दस रुपए की पर्ची काटकर सदस्य बनाने और लगभग पांच सौ तलवारें बांटने का काम किया गया था। जिसकी शिकायत भी गांव के मुसलानों द्वारा पुलिस को लिखित में दी गयी थी। दूसरे दिन नंगला मदोड़ में होने वाली महापंचायत जिसे हिन्दुत्वादी संगठनों, रालोद और भारतीय किसान यूनियन का समर्थन प्राप्त था, में खुले हथियारों जैसे बंदूक, हसिया, गड़ासा, तलवार, देशी तमंचे से लैस होकर जाते हुए रास्ते में सुबह 9-10 बजे के करीब बसी गांव के करीब पलड़ा गांव की सात माह की गर्भवती रुकसाना पत्नी रहीस को मार दिया तथा दो अन्य लड़कों को घायल कर दिया तो वहीं पंचायत के दौरान लगभग 12 बजे जब पंचायत में शामिल लोगों को पता चला कि उनके बीच जो बोलेरो गाड़ी किराए पर आई है उसका ड्राइवर मुसलमान है तो ड्राइवर इंसार पुत्र वकील गांव गढ़ी दोलत को गोलियों से छलनी कर दिया गया। इंसार के शरीर से पोस्टमार्टम में 18 गोलियां मिली हैं। इस घटना की एफआईआर कांधला थाने में दर्ज है। पंचायत के बाद लौटते हुए शाम को चार बजे नंगला बुर्ज गांव में गांव के ही असगर पुत्र अल्ला बंदा को घायल किया गया, वहीं 5 बजे तेवड़ा गांव के निवासी फरीद पुत्र दोस्त मोहम्मद को तलवार से हमला करके घायल किया। 6 बजे तेवड़ा के ही सलमान पुत्र अमीर हसन की हत्या तेवड़ा गांव में कर दी गई उसके बाद खेड़ी फिरोजाबाद गांव में लताफत पुत्र मुस्तफा की हत्या हुई, इसी गांव के नज़र मोहम्मद पुत्र मूसा की भी हत्या कर दी गई। इन घटनाओं से साफ है मुसलामानों के खिलाफ संगठित हिंसा महापंचायत में जाते वक्त, पंचायत के दौरान और पंचायत से लौटते वक्त शुरु हो गई थी।
जांच दल ने पाया कि कुटबा, कुटबी गांव में ‘संघ शक्ति’ नाम का संगठन पिछले एक साल से अधिक समय से सक्रिय था। इस संगठन के एजेंडे में जाटों के नेतृत्व मे कमजोर हिन्दू जातियों खासकर झिम्मर (कश्यप) और दलितों को इकट्ठा करना और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलना था। माथे पर ‘ऊं’ निशान वाला सफेद पट्टी बांधने वाले ‘संघ शक्ति’ के लोगों ने महापंचायत से 15 दिन पहले से दिन में एक बार के बजाए दिन में तीन-तीन बार बैंठके करनी शुरू कर दी थीं। जिसका नेतृत्व जाट जाति का प्रधान देवेंद्र करता है। इस गांव में कई मुसलमान मारे गए और गांव के सारे मुसलमान कांधला, कैराना, मलकपुर समेत विभिन्न पीडित शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
रिहाई मंच जांच दल का आरोप है कि सपा सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा पीडित मुसलमानों को न्याय देने के बजाए पूरे मामले की लीपापोती करने में ही पूरी ऊर्जा लगा दी और सुप्रिम कोर्ट में हलफनामा दिया कि पीडितों के लिए बने शिविर सरकार संचालित कर रही है जो बिल्कुल झूठ है। सारे राहत शिविर खुद मुस्लिम समाज व उनकी तंजीमें चला रही हैं। जांच दल को कैराना राहत शिविर के पीडितों ने बताया कि एक दिन प्रशासन के लोग छुपकर दूध बाटंकर कोटा पूर्ती करने की कोशिश की जिसे उन लोगों ने लेने से इंकार कर दिया।
इसी तरह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में झूठ बोला कि सरकार ने कैराना कैम्प में 2700 मुसलमानों की व्यवस्था की है। जबकि हलफनामा देते वक्त इस कैम्प में कुल 9771 लोग थे। कैम्प के संचालक अजमतुल्ला खान ने बताया कि पूरा खर्च स्थानिय मुसलमानों और उनके संगठन उठा रहे हैं। करैना से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मलकपुर राहत शिविर के हालात काफी खराब हैं। हजारों की संख्या में लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं, बरसात के वक्त वहां के हालात काफी खराब हो जाते हैं। सपा नेताओं द्वारा जो दौरे किए जा रहे हैं वो महज कोटा पूर्ती और मीडिया मैनेजमेंट की कोशिश है। जिसकी तस्दीक इससे भी होती है कि कल 23 सितंबर को कांधला राहत शिविर में सपा कुनबे के नेता शिवपाल यादव ने वहां इकट्ठा पीडितों से सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा। वहीं कांधला कैंप के लोगों ने ही बताया कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी मुस्लिम विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए कांधला कैंप में अपनी हिफाजत और इंसाफ के लिए शोर मचा रहे लोगों को यह कहकर शांत कराने की कोशिश की कि आप लोगों ने भी तो हमारी ट्रालियों को तबाह किया है। पीडितों का कहना है जब मुख्यमंत्री ही अपने को हिंदू मानकर बात करेंगे तो बात कैसे बनेगी।
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शाहनवाज आलम व राजीव यादव ने कहा कि पिछले तीन दिन से चल रहे दौरे में पाया गया कि विभिन्न गांवों के जो लोग राहत शिविरों में हैं उनसे उनके परिवार के लोग आज हफ्तों बाद भी बिछड़े हुए हैं इनमें बच्चों व महिलाओं की संख्या काफी है। पीडितों ने यह भी बताया कि जगह-जगह छोटे-छोटे बच्चों व महिलाओं को निशाना बनाया गया है। ऐसे में यह सुनिश्चित नहीं हैं कि वो जिंदा भी हैं। जिस तरह महिलाओं के साथ अभद्रता व उनको कई-कई दिनों तक बंधक बनाने की खबरें सामने आ रही हैं ऐसे में स्पष्ट है कि दंगाईयों ने बलात्कार भी किए है। पर जिस तरीके से जाट समुदाय की दहशत है और दूसरी तरफ प्रदेश सरकार इन मामलों को स्थानीय सपा के नेताओं के जरिए दबाने की कोशिश कर रही है ऐसे में महिलाओं से जुड़े इस गंभीर मुद्दे पर सुप्रिम कोर्ट संज्ञान ले। इन मामलो में राज्य महिला आयोग की आपराधिक चुप्पी को देखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग को तत्काल अपनी तरफ से जांच दल भेजना चाहिए।
मेरी 12 वर्षीय बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार करके उसे काट कर तेजाब से जला दिया गया- वसीला मुकीम
मेरे सामने ही मेरे दादा को गड़ासे से तीन टुकड़े काट
दिया गया- शबनम
उत्तर प्रदेश सरकार दंगा पीडितो को बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था नहीं कर पायी लेकिन वन विभाग ने शिविर में रह रहे लोगों पर वन विभाग की जमीन पर कब्जा करने का मुकदमा दर्ज कर सरकार की मुस्लिम विरोधी रवैए को उजागर कर दिया है। यह आरोप सांप्रदायिक हिंसा पीडित कैंपों का दौरा कर रहे रिहाई मंच के जांच दल ने लगाया। रिहाई मंच ने आरोप लगाया है कि कैराना रेंज के वन अधिकारी नरेन्द्र कुमार पाल ने हजारों मुसलमानों के खिलाफ थाना कैराना जिला शामली में मुकदमा अपराध संख्या 449/13 दर्ज करावाया है। जिसके चलते सांप्रदायिक हिंसा पीडित कैंपों में रह रहे लोगों के सामने गंभीर संकट पैदा हो गया है। जो लोकनिर्माण विभाग मंत्री शिवपाल यादव द्वारा पीडितों को कहीं भी बसाने के वादे को झूठा साबित करता है पीडितों के जख्मों पर सपा सरकार द्वारा नमक छिड़कने जैसा है। रिहाई मंच ने कहा है कि जिस तरह मुलायम सिंह यादव और उनका कुनबा पीडितों को न्याय दिलाने के बजाए जाटों और मुसलमानों के बीच फैसला पंचायत आयोजित कर दोनों तबकों में सुलह कराने, मुकदमे वापस लेने और जांच में फाइनल रिपोर्ट लगवाकर केस खत्म करने की बात कर रहे हैं वह पीडितों को इंसाफ से वंचित करने और न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश है।
रिहाई मंच जांच दल ने पाया कि मुसलमानों के खिलाफ संगठित हिंसा की तैयारी 7 सितंबर को नंगला मदौड़ में हुई जाट महापंचायत से पहले ही कर ली गई थी और 7 सितंबर की शाम को लौटने के बाद गांवों में मुसलमानों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाईयां शुरु कर दी गई थीं। थाना फुगाना के लाख गांव के शहजाद ने जांच दल को बताया कि सात सितंबर की रात जाटों के पंचायत से लौटने के बाद गांव में शोर शराबा बढ़ गया और सिकंदर जाट पुत्र इकबाल जाट ने गांव के मंदिर से ऐलान किया कि सभी हिन्दू मंदिर में इकट्ठा हो जाएं ताकि मुसलमानों को मारना शुरु किया जाए। इस ऐलान के बाद जाट हथियारबंद होने लगे और मुसलमानों के खिलाफ नारेबाजी होने लगी। इसी गांव के मोहम्मद मुकीम ने बताया कि मुस्लिम विरोधी नारे सुनने के बाद जब उन्होंने गांव के प्रधान बिल्लू जाट से सुरक्षा की गुहार की तब प्रधान और उसके साथी संजीव पुत्र झल्लड़ जाट ने मुकीम से कहा कि तुम सारे मुसलमान मर्द गांव छोड़कर चले जाओ और औरतों को यहीं रहने दो कोई दिक्कत नहीं होगी। मुकीम और उसकी पत्नी वसीला ने बताया कि 7 सितंबर की शाम को ही प्रधान बिल्लू के दरवाजे पर नीटू पुत्र कंवर पाल जाट और कोटेदार प्रमोद प्लास्टिक और शीशियों में केरासन तेल और तेजाब भरकर इकट्ठा कर रहे थे। 8 सितंबर सुबह 9 बजे मुसलमानों के खिलाफ शरु हुई हिंसा और आगजनी के चलते जान बचाकर चार दिनों तक गन्ने के खेत में छिपे और इस दरम्यान अपनी बारह साल की बेटी को सामूहिक बलात्कार और तेजाब छिड़कर की गई हत्या में खो चुके इस परिवार ने बताया कि ग्राम प्रधान बिल्लू ने आगजनी की अगुवाई की और तेल भरी शीशियां लोगों व उनके घरों पर फेंकी जिनमें से एक शीशी का शिकार बनते-बनते खुद मुकीम बचे। वे कहते हैं उन्होंने आखिरी बार अपनी बेटी को नीटू, संजीव समेत आठ दस लोगों के बीच घिरा देखा जो उसके कपड़े फाड़ चुके थे। वे कहते हैं कि चार दिन बाद थाना फुगाना में लाश की शिनाख्त के लिए बुलाए जाने पर कपड़ों से उन्होंने अपनी बेटी को पहचाना जिसको तीन टुकड़े करके तेजाब से जलाया और एक प्लास्टिक की पालीथीन में डाला गया था, उनकी बेटी की शव में कीड़े पड़ गए थे। लेकिन पुलिस ने बिना किसी लिखा पढ़ी के शव को दफना दिया। लाख गांव के पीडितों से तफ्तीश करने के दौरान रिहाई मंच जांच दल ने पाया कि इस गांव में इस तरह की और भी कई घटनाएं हैं जहां महिलाओं खासकर कम उम्र की बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार व हत्याएं हुई हैं जिसे प्रशासन दबा रहा हैं। रिहाई मंच को कई गांवों के पीडितों ने बताया कि उनके गांवों के प्रधान जो जाट जाति से आते हैं ने हर जगह इसी तरह की भूमिका निभाई। रिहाई मंच ने मांग की है कि थाना फुगाना के पूरे पुलिसिया अमले को तत्काल निलंबित कर जांच के दायरे मे लाया जाए।
उत्तर प्रदेश सरकार दंगा पीडितो को बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था नहीं कर पायी लेकिन वन विभाग ने शिविर में रह रहे लोगों पर वन विभाग की जमीन पर कब्जा करने का मुकदमा दर्ज कर सरकार की मुस्लिम विरोधी रवैए को उजागर कर दिया है। यह आरोप सांप्रदायिक हिंसा पीडित कैंपों का दौरा कर रहे रिहाई मंच के जांच दल ने लगाया। रिहाई मंच ने आरोप लगाया है कि कैराना रेंज के वन अधिकारी नरेन्द्र कुमार पाल ने हजारों मुसलमानों के खिलाफ थाना कैराना जिला शामली में मुकदमा अपराध संख्या 449/13 दर्ज करावाया है। जिसके चलते सांप्रदायिक हिंसा पीडित कैंपों में रह रहे लोगों के सामने गंभीर संकट पैदा हो गया है। जो लोकनिर्माण विभाग मंत्री शिवपाल यादव द्वारा पीडितों को कहीं भी बसाने के वादे को झूठा साबित करता है पीडितों के जख्मों पर सपा सरकार द्वारा नमक छिड़कने जैसा है। रिहाई मंच ने कहा है कि जिस तरह मुलायम सिंह यादव और उनका कुनबा पीडितों को न्याय दिलाने के बजाए जाटों और मुसलमानों के बीच फैसला पंचायत आयोजित कर दोनों तबकों में सुलह कराने, मुकदमे वापस लेने और जांच में फाइनल रिपोर्ट लगवाकर केस खत्म करने की बात कर रहे हैं वह पीडितों को इंसाफ से वंचित करने और न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश है।
रिहाई मंच जांच दल ने पाया कि मुसलमानों के खिलाफ संगठित हिंसा की तैयारी 7 सितंबर को नंगला मदौड़ में हुई जाट महापंचायत से पहले ही कर ली गई थी और 7 सितंबर की शाम को लौटने के बाद गांवों में मुसलमानों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाईयां शुरु कर दी गई थीं। थाना फुगाना के लाख गांव के शहजाद ने जांच दल को बताया कि सात सितंबर की रात जाटों के पंचायत से लौटने के बाद गांव में शोर शराबा बढ़ गया और सिकंदर जाट पुत्र इकबाल जाट ने गांव के मंदिर से ऐलान किया कि सभी हिन्दू मंदिर में इकट्ठा हो जाएं ताकि मुसलमानों को मारना शुरु किया जाए। इस ऐलान के बाद जाट हथियारबंद होने लगे और मुसलमानों के खिलाफ नारेबाजी होने लगी। इसी गांव के मोहम्मद मुकीम ने बताया कि मुस्लिम विरोधी नारे सुनने के बाद जब उन्होंने गांव के प्रधान बिल्लू जाट से सुरक्षा की गुहार की तब प्रधान और उसके साथी संजीव पुत्र झल्लड़ जाट ने मुकीम से कहा कि तुम सारे मुसलमान मर्द गांव छोड़कर चले जाओ और औरतों को यहीं रहने दो कोई दिक्कत नहीं होगी। मुकीम और उसकी पत्नी वसीला ने बताया कि 7 सितंबर की शाम को ही प्रधान बिल्लू के दरवाजे पर नीटू पुत्र कंवर पाल जाट और कोटेदार प्रमोद प्लास्टिक और शीशियों में केरासन तेल और तेजाब भरकर इकट्ठा कर रहे थे। 8 सितंबर सुबह 9 बजे मुसलमानों के खिलाफ शरु हुई हिंसा और आगजनी के चलते जान बचाकर चार दिनों तक गन्ने के खेत में छिपे और इस दरम्यान अपनी बारह साल की बेटी को सामूहिक बलात्कार और तेजाब छिड़कर की गई हत्या में खो चुके इस परिवार ने बताया कि ग्राम प्रधान बिल्लू ने आगजनी की अगुवाई की और तेल भरी शीशियां लोगों व उनके घरों पर फेंकी जिनमें से एक शीशी का शिकार बनते-बनते खुद मुकीम बचे। वे कहते हैं उन्होंने आखिरी बार अपनी बेटी को नीटू, संजीव समेत आठ दस लोगों के बीच घिरा देखा जो उसके कपड़े फाड़ चुके थे। वे कहते हैं कि चार दिन बाद थाना फुगाना में लाश की शिनाख्त के लिए बुलाए जाने पर कपड़ों से उन्होंने अपनी बेटी को पहचाना जिसको तीन टुकड़े करके तेजाब से जलाया और एक प्लास्टिक की पालीथीन में डाला गया था, उनकी बेटी की शव में कीड़े पड़ गए थे। लेकिन पुलिस ने बिना किसी लिखा पढ़ी के शव को दफना दिया। लाख गांव के पीडितों से तफ्तीश करने के दौरान रिहाई मंच जांच दल ने पाया कि इस गांव में इस तरह की और भी कई घटनाएं हैं जहां महिलाओं खासकर कम उम्र की बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार व हत्याएं हुई हैं जिसे प्रशासन दबा रहा हैं। रिहाई मंच को कई गांवों के पीडितों ने बताया कि उनके गांवों के प्रधान जो जाट जाति से आते हैं ने हर जगह इसी तरह की भूमिका निभाई। रिहाई मंच ने मांग की है कि थाना फुगाना के पूरे पुलिसिया अमले को तत्काल निलंबित कर जांच के दायरे मे लाया जाए।
रिहाई मंच जांच दल में शामिल अवामी कांउसिल फार
डेमोक्रेसी एंड पीस के असद हयात, राजीव यादव, शरद जायसवाल, गुंजन सिंह, लक्ष्मण प्रसाद और शाहनवाज आलम ने बताया कि इसी रिलीफ कैम्प के ग्राम फुगाना
निवासी आस मोहम्मद की पत्नी के साथ गांव के ही सुधीर जाट, विनोद, सतिंदर ने उन पर हमला किया जिसमें उनके तीन बच्चे गुलजार(10), सादिक(8) और ऐरान(6) बिछड़ गए जिनका पता आज तक नहीं चला। उन्होंने बताया कि उन लोगों ने मेरे कपड़े
फाड़ दिये और बुरी तरीके से दांत काटे तभी बगल से एक और लड़की भागी जिसकी तरफ वे
लोग लपके और मैं वहां से किसी तरह बच कर भाग पायी। रिहाई मंच जांच दल को कैराना
कैम्प में रहने वाली फुगाना गांव की शबनम ने बताया कि 8 सितम्बर को सुबह 9-10 बजे के करीब नारों की शोर
सुनकर हम सब वहां से भागे और पास के लोई गांव में एक घर में छुप गए लेकिन मेरे
दादा बूढ़े होने के चलते पीछे छूट गए। जिन्हें हमने अपने गांव के ही विनोद, चसमबीर, अरविंद, हरपाल और अन्य द्वारा गड़ासे से तीन टुकड़े काट कर मारे जाते हुए देखा।
फुगना थाने के गांव लिसाढ़ जहां दो दर्जन से ज्यादा मुसलमान मारे गए कि एक महिला ने बताया कि अख्तरी(65) को जब जिंदा जलाया गया तब उनकी गोद में उनकी पोती भी थी वो भी गोद में चिपके-चिपके ही जल गयी, जिन्हें दफनाते वक्त बच्ची को गोद से अलग नहीं किया गया। उस्मानपुर की इमराना की 12 वर्षीय बेटी रजिया जो गांव के मदरसे में पढ़ रही थी ने बताया कि मदरसे पर बहुत सारे जाटों ने गड़ासे और तलवारों के साथ हमला किया किसी तरह से रजिया अपने दो भाईयों जावेद(10) और परवेज(8) के साथ भागी और गन्ने के खेतों में पूरा दिन और पूरी रात छुपे रहे। रिहाई मंच जांच दल को पीडितों ने बताया कि कई गांवों में मदरसों पर हमला किया गया। जिसमें पढ़ने वाले कई बच्चे-बच्चियां आज तक गायब हैं।
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि मुसलमानों के खिलाफ हुयी इस संगठित हिंसा में जाटों की एकता राजनीतिक वफादारियों से उपर उठ कर काम कर रही थी। इसीलिए 5 सितम्बर को लिसाढ़ गांव में आयोजित जाट बिरादरी के गठवारा खाप पंचायत जिसे 52 गांवों के मुखिया और क्षेत्र के दबंग हरिकिशन बाबा ने बुलायी थी उसमें कांग्रेस के पूर्व राज्य सभा सांसद व स्थानीय कांग्रेस विधायक पंकज मलिक के पिता हरिंदर मलिक भी मौजूद थे। इस पंचायत जिसमें मुसलमानों के जनसंहार की रणनीति बनी उसका संचालन शामली जिला के समाजवादी पार्टी सचिव डाक्टर विनोद मलिक ने की जिसमें हुकूम सिंह और तरूण अग्रवाल समेत कई भाजपा नेता भी शामिल थे। लेकिन हरिकिशन समेत सभी नेताओं पर धारा 120 बी के तहत आपराधिक षडयंत्र रचने का मुकदमा दर्ज है लेकिन आज तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। रिहाई मंच की मांग है कि ग्राम लिसाढ़, लाख, बहावड़ी, सिम्हालका, कुगड़ा, कुटबा, कुटबी आदि कई गांवों में जहां मकानों को जलाया गया है उनके पीडितों को तुरंत 5-5 लाख रूपये मुआवजा दिया जाए
फुगना थाने के गांव लिसाढ़ जहां दो दर्जन से ज्यादा मुसलमान मारे गए कि एक महिला ने बताया कि अख्तरी(65) को जब जिंदा जलाया गया तब उनकी गोद में उनकी पोती भी थी वो भी गोद में चिपके-चिपके ही जल गयी, जिन्हें दफनाते वक्त बच्ची को गोद से अलग नहीं किया गया। उस्मानपुर की इमराना की 12 वर्षीय बेटी रजिया जो गांव के मदरसे में पढ़ रही थी ने बताया कि मदरसे पर बहुत सारे जाटों ने गड़ासे और तलवारों के साथ हमला किया किसी तरह से रजिया अपने दो भाईयों जावेद(10) और परवेज(8) के साथ भागी और गन्ने के खेतों में पूरा दिन और पूरी रात छुपे रहे। रिहाई मंच जांच दल को पीडितों ने बताया कि कई गांवों में मदरसों पर हमला किया गया। जिसमें पढ़ने वाले कई बच्चे-बच्चियां आज तक गायब हैं।
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि मुसलमानों के खिलाफ हुयी इस संगठित हिंसा में जाटों की एकता राजनीतिक वफादारियों से उपर उठ कर काम कर रही थी। इसीलिए 5 सितम्बर को लिसाढ़ गांव में आयोजित जाट बिरादरी के गठवारा खाप पंचायत जिसे 52 गांवों के मुखिया और क्षेत्र के दबंग हरिकिशन बाबा ने बुलायी थी उसमें कांग्रेस के पूर्व राज्य सभा सांसद व स्थानीय कांग्रेस विधायक पंकज मलिक के पिता हरिंदर मलिक भी मौजूद थे। इस पंचायत जिसमें मुसलमानों के जनसंहार की रणनीति बनी उसका संचालन शामली जिला के समाजवादी पार्टी सचिव डाक्टर विनोद मलिक ने की जिसमें हुकूम सिंह और तरूण अग्रवाल समेत कई भाजपा नेता भी शामिल थे। लेकिन हरिकिशन समेत सभी नेताओं पर धारा 120 बी के तहत आपराधिक षडयंत्र रचने का मुकदमा दर्ज है लेकिन आज तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। रिहाई मंच की मांग है कि ग्राम लिसाढ़, लाख, बहावड़ी, सिम्हालका, कुगड़ा, कुटबा, कुटबी आदि कई गांवों में जहां मकानों को जलाया गया है उनके पीडितों को तुरंत 5-5 लाख रूपये मुआवजा दिया जाए
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