बाबा बीम राव रामजी
अम्बेडकर
साहब 14 अप्रेल देश भर
में एक यादगार दिन के रूप में याद किया जाता है ये दिन एक ऐसा दिन है जिस दिन हमारे
संविधान के निर्माता व देश के महानायक डॉ भीम राव अम्बेडकर जी का जन्म हुआ
जिन्होंने समाज से भेदभाव ख़तम करने और दबे कुचले वर्ग के लिए आवाज़ उठाई और देश को
एक ऐसा संविधान दिया जिसमे कोई जातीय भेदभाव नहीं है जिसमे कोई ऊँचा नीचा नहीं था
जिसमे सभी को सामान रूप से शिक्षा हासिल करने का अधिकार प्राप्त था जब भी अम्बेडकर
जी का नाम लिखा जायेगा हमेशा सुनहरे अक्षरो से लिखा जायेगा एक ऐसा संघर्षमय जीवन
जिसकी उस दौर में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी विपरीत परिस्थितियों में विपरीत
समय में समाज में दबे कुचले लोगो के लिए अनुकूल परिस्थितियां तेयार करना और एक ऐसे
समाज के जागरूकता के लिए काम करना जो खुद को शुद्र मान कर दास मानकर स्वीकार चुका
था कि उसका जन्म तो सिर्फ सेवा के लिए ही हुआ है और ईश्वर ने मैला ढोना ही उनकी
किस्मत में लिखा है मरे हुए जानवरों को खाना ही उनकी किस्मत है वो मान चुके थे कि
उनका ईश्वर इतना निर्दयी है कि उसने उनका जन्म उनके पिछले जन्मो के पापो के आधार
पर शुद्र समाज में किया है उन्हें कोई अधिकार नहीं है कि वह पढ़ लिख सके उन्हें कोई
अधिकार नहीं है कि वो किसी धर्म ग्रन्थ को हाथ भी लगा सके यहाँ तक की उन्हें उच्च
जाति के मंदिरों में भी प्रवेश नहीं करने दिया जाता था ऐसा समय में डॉ भीम राव
अम्बेडकर में मानसिक रूप से अपंग हो चुके समाज में चेतना की लहर दौड़ा दी और ऐसी
क्रांति को जन्म दिया समाज के दबे हुए लोगो को शक्ति दी और एक परिवर्तन को इतिहास के पन्नो में यादगार जगह दी डॉ भीम राव
अम्बेडकर को सभी समुदायों व धर्मो के लोगो ने अपने नेता के रूप में स्वीकार किया व
प्रशासन को इस बात का अहसास कराया कि दलित वर्ग में भी महान लोग पैदा होते है
महानता का अधिकार सिर्फ उच्च वर्ग के पास ही नहीं वरन समाज के सभी वर्गो के पास
समान रूप से है उन्होंने आम जनता को बताया कि जब ईश्वर के द्वारा बरसाया जाने वाला
वर्ष का जल, चलती हुयी हवाए किसी के साथ भेदभाव नहीं करती वर्षा होती है तो सभी के
लिए समान रूप से होती है हवा चलती है तो सभी के लिए चलती है तो फिर ईश्वर के
द्वारा बनाये गए मानव को किसने अधिकार दे दिया कि वो भेदभाव करे किसी को ऊँचा बना
दे किसी को नीचा घोषित कर दे इस तरह बाबा साहब ने 3500 साल तक अपने ही देश ग़ुलामो की तरह रहते वाले समुदाय को
आज़ादी दिलाई और हिन्दू धर्म को त्याग कर बोद्ध धर्म की दिक्षा ली
दलितों का राजनीति में प्रवेश
दलित राजनीति का आरंभ तो बाबा साहब ने खुद ही कर दिया था बाबा साहेब पहली बार
आज़ादी से पहले मुस्लिम लीग के समर्थन से राज्यसभा चुन कर भेजे गए थे इसके बाद देश
में बाबा साहब को आदर्श मानते हुए दलित उत्थान और जगृति के लिए बहुत से आन्दोलन
हुए माननीय काशीराम जी ने अपना जीवन दलित उत्थान व राजनीती को समर्पित किया और
हाशिये पर रहे दलित समुदाय को सरकार में भी हिस्सेदारी दिलवाई ये ज़रूरी भी था
सत्ता में हिस्सेदारी के बिना अपने अधिकारों को प्राप्त नहीं किया जा सकता लेकिन
सत्ता में हिस्सेदारी की चाह ज्यादा घातक है बल्कि कुछ मौको पर तो ये चाह आत्मघाती
है दलित राजनीति की शुरुआत सही हुयी और उन्होंने सदियों तक उन्हें मानसिक व
शारीरिक रूप से ग़ुलाम बनाये रखने वाले ब्राह्मण समाज के विरुद्ध आन्दोलन के रूप
में शुरुआत की जिसका राजनीति पर बड़ा प्रभाव पड़ा और हाशिये पर पड़ा दलित समुदाय एक
राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया
सामाजिक षड्यंत्र
राजनीतिक शक्ति बनने के साथ ही दलित समुदाय को वोट बैंक बनाये रखने वाले राजनीतिक
दलों में दलितों को राजनीतिक रूप से कमज़ोर करने के प्रयास भी शुरू हुए क्योकि जिन
लोगो ने दलितों को शुद्र घोषित करके पिछले 3500 तक ग़ुलाम बनाये रखा इनके लिए दलित उत्थान एक चुनौती बन गया क्योकि
सक्रिय रूप से राजनीति में आने के बाद दलित समुदाय के लोग जिन्हें उच्च जाति के
लोग अछूत मानते थे विधायिका, कार्यपालिका में उच्च जाति के लोगो के बराबर में जा
बेठे और खुद को ऊँचा समझने वाले ब्राह्मणवादी समुदाय के लिए ये अपमान की बात थी
इसलिए दलितों को राजनीतिक रूप से अपंग करने के लिए हिन्दू एकता का नारा दिया गया
हालाकि हिन्दू किसी धर्म का नाम नहीं था धर्म तो वैदिक या सनातन धर्म है लेकिन
दलितों के विरुद्ध षड्यंत्र करने के लिए हिन्दू धर्म का अविष्कार किया गया व दलित
चेतना का केंद्र रहा उत्तर प्रदेश का बाबा गोरखनाथ मंदिर हिंदुत्व की प्रयोगशाला
बन गया और सदियों तक दलितों का शोषण करने वाला समुदाय दलितों को अपना कहने लगा व शीण
पड़ चुकी वर्ण व्यवस्था को फिर से मज़बूत करने में लग गया
सत्ता लोभ के दुषपरिणाम
काशीराम जी ने अपने राजनीतिक आन्दोलन की शुरूआत वर्ण व्यवस्था को चुनौती देते
हुए कि और उन्होंने नारा दिया “तिलक तराजू और तलवार इनको मरो जूते चार” इसके बाद दलित समुदाय में चेतना
जागी और राजीनीति में दलितों का सीधा हस्तक्षेप हुआ काशीराम जी के बाद इस आन्दोलन
का बीड़ा मायावती जी ने उठाया और बड़ी सफलताये प्राप्त भी की लेकिन सत्ता लोभ में
आकर मुद्दे से हट कर विरोधी रहे ब्राह्मणों के साथ मिल कर राजनीति में जाने का
फैसला किया और नारा दिया “हठी नहीं गणेश है ब्रहमा, विष्णु, महेश है और भाजपा के साथ
मिल कर सरकार भी बनायीं लेकिन जिस विचारधारा के विरुद्ध दलित राजनीति का उदय हुआ
था उस विचारधारा को त्याग कर दलित वर्चस्व को बनाये रखना मुमकिन नहीं था और इसका
परिणाम 2014
के लोकसभा
चुनावो में देखने को मिला जब दलित वोट ही अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी को छोड़ कर
अपने धुरविरोधी रहे ब्राह्मणों के पक्ष में पड़ गया और बहुजन समाजवादी पार्टी को अप्रत्यक्ष
हार का सामना करना पड़ा
अब अगर दलित अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखना चाहते है तो उन्हें देश के सभी
वंचित वर्गों के साथ मिल कर राजनीतिक प्रयास करने होने और ख़ास तौर पर दलित मुस्लिम
राजनीतिक समीकरण देश की राजनीति में फिर से बड़ा बदलाव ला सकता है लेकिन इसके लिए
दलितों को ब्राह्मण प्रेम का मोह त्यागना होगा और धर्म परिवर्तित दलित (मुस्लिम)
के साथ मिल कर नई रणनीति तेयार करनी होगी क्योकि आगे उत्तर प्रदेश विधानसभा का
चुनाव सामने है उत्तर प्रदेश में इस बार राजनीतिक असफल होने पर निसंदेह ही दलित
राजनीति का पतन हो जायेगा
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