मंगलवार, 28 जून 2011

ज़िन्दगी की पहेली ...?

ज़िन्दगी के बारे में सोचा कुछ समझ नही आया ज़िन्दगी से शुरू हुआ हर सवाल आस पास के जाने अनजाने रिश्तो में जाकर उलझ कर अधुरा रह गया और इस भीड़ भरे माहोल में बहुत सरे नजदीकी रिश्ते होने के बाद भी इन्सान तनहा हे सवाल कुछ और आगे बड़ा तो इन्सान की खुशियों की तमन्ना ही उसे तन्हाई तक ले गयी आज हम सभी लोग अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ करते हैं शायद ही कोई अपने लिए करता हो कम से कम हम भारत वासी तो अपने लिए नही जिया करते देश के जादातर लोग तो सिर्फ अपने परिवार के लिए जिया करते हे अपने परिवार की खुशियों के लिए अच्छी परवरिश के लिए और इसी तरह की बहुत सी ज़रुरतो के लिए हम लोग जादा से जादा पैसा कमाने के लिए मानसिक या शारीरिक महनत करते हैं सुबह घर से निकल कर शाम घर लोटने तक इतनी थकन और उलझाने हो जाती हे की मन की सारी उमंगें शिथिल हो जाती हैं शाम को तन्हाई में घर से बाहर कुछ पल साथ बिताने का सपना जीवन संगनी जब जब अपने शोहर के चेहरे पर बिखरी थकन देखती हे तो अपनी ख़ुशी को अपने शोहर के लिए कुर्बान कर देती हे और खुद ही कही जाने को मना कर देती हे उसके बाद हफ्ते में मिली एक छुट्टी भी सोते हुए या घर के ज़रूरी काम करते हुए या मेहमानों से मिलते हुए यु ही गुज़र जाती हे ये हकीक़त हे उन शादी शुदा जोड़ो की जो जोइंट फॅमिली में रहते हैं और पत्नी हाउस वाइफ हे

अब बात करते हैं ऐसे परिवार की जहाँ दोनों पति पत्नी नोकरी पेशा हैं और व्यस्त ज़िन्दगी में दोनों ही एक दुसरे को वक़्त नही दे पाते कभी एक के पास वक़्त नही तो कभी दुसरे के पास वक़्त नही इस तरह रिश्तो में प्यार कम होने लगता हे और जेसे तेसे ज़िन्दगी चलती रहती हे हलकी आज के वक़्त में एक कमाई से परिवार चलना मुश्किल हे लें हम पैसो के पीछे क्यों भाग रहे हे ये भी सोचना ज़रूरी हे

अब बात करते हैं ऐसे लोगो की जो अभी शादी के बंधन में नही बंधे कमाने लायक होते ही इन्सान पर इतनी पारिवारिक जिम्मेदारिय हो जाती हैं बहन की शादी से लेकर बूढ़े मान बाप का इलाज और घर के बच्चो की पढाई का खर्च इन सभी ज़रूरत के चलते हम लोग इन्सान से पैसा कमाने की मशीन बन कर रह जाते हैं और पारिवारिक जिम्मेदारियों से भगा तो नही जाता और न ही अपनी ज़िन्दगी को जिया जा सकता हे ये ही हालत हे आज के नोजवान की और इन सभी के बिच उसे गलती से किसी लड़की से प्यार हो जाये तो आफत आजाती हे जिसके पास खुद के लिए वक़्त नही वो अपनी प्रेमिका को वक़्त कहाँ से देगा लेकिन इसका ये मतलब तो नही की वो प्यार क हकदार ही नही हे पारिवारिक ज़िम्मेदारी वाला व्यस्त इन्सान सुबह से शाम तक काम में व्यस्त उसके बाद कुछ पारिवारिक काम फिर बचा रात का वक़्त तो बेचारे अबला पुरुष को सोना भी होता हे और अगर ये इन्सान समाज सेवक भी हो तो मुझे लागत हे की उसे प्यार नाम को भूल ही जाना चाहिए क्योकि फिर तो बिलकुल भी वक़्त नही बचता किसी को देने के लिए अब सवाल ये उठता हे की नोजवान करे तो करे क्या येही वजह हे जो हमारे देश के युवा मिस्र जेसा आन्दोलन नही कर सकते और इसी वजह के चलते आज राजनीति में नोजवान नही हे और ४०-४५ साल के लोगो को राजनीति में युवा माना जाता हे देश को आज युवा जोश की ज़रूरत हे जो धर्म से ऊपर जा कर देश के बारे में सोच सके और अगर कोई युवा ऐसा करना चाहता हे तो ये ज़रूरी हे की उसे उसका परिवार व जीवन साथी उसे सम्मान दे.


2 टिप्‍पणियां:

  1. जी बिलकुल देश और समाज सेवा के लिए तो हम आपके साथ हैं, पर लुगाई वाला मामले में कुछ नहीं कर सकतें भाई,
    जनाब लुगाई का मामला ऐसा है कि जो करे वो पछताए और जो न करे वो भी पछताए। वैसे पत्रकारों / समाज सेवकों की शादियां तो होती ही नहीं, पहला सवाल - लड़का करता क्या है? जी पत्रकार / समाज सेवक है। हां वो तो ठीक है पर करता क्या है? लिहाजा पत्रकारों / समाज सेवकों की शादी भी बडी मुश्किल से होती है, अब तो सवाल फिर से खड़ा हो गया कि करें तो करें क्या,
    अब तो बस वही गाना याद आरहा है, जाएँ तो जाएँ कहाँ,

    जवाब देंहटाएं
  2. >>

    मेरे प्यारे भतीजे और अज़ीज़ देशभक्त मुस्लिम भाईयों,

    जिस चीज़ की तलाश आप बाहर कर रहे हैं, वो दिल के अन्दर के
    खालीपन को कभी नहीं भर सकती, ये हम एक छोटी सी कहानी से समझें -

    एक बार सूफी संत राबिया के घर उसका दोस्त फ़कीर हसन मेहमान हुआ, दूसरे दिन सुबह जब हसन राबिया की झोपडी से बाहर आया तो ऊगते सूरज के नज़ारे को देखकर वो चिल्ला पडा "राबिया तू झोपड़े के अन्दर क्या कर रही है, बाहर आ, देख कैसे सूरज का नूर रोशन हो रहा है...!!!"

    राबिया उस वक्त खुदा की इबादत में डूबी थी, उसने अपने झोपडी के अन्दर से ही बोला "हसन तू बाहर क्या कर रहा है, अन्दर आ, देख तेरे सूरज को बनाने वाले का नूर कैसे मेरे दिल में रोशन हो रहा है...!!!"

    इसलिए दोस्तों, मैं कहता हूँ की जो जिन्दगी, मोहब्बत और आनंद आप कई-कई तरीकों से बार-बार बाहर ढूँढने निकल पड़ते हो, वो तो आपके झोपड़े में है, आपके दिल में है, याद रहे -

    "मंदिर में तो भूत बैठे, मस्जिद में सिर्फ सफाई है !
    और ह्रदय द्वार में नूर झलकता, वो घर ख़ास खुदा का है !!"

    ...

    जवाब देंहटाएं