शुक्रवार, 9 मार्च 2012

महिला दिवस पर एक विशेष रिपोर्ट

महिलाओं के सम्मान और गौरव को समर्पित यह दिवस जब भी आता है मुझे लगता है हम एक कदम आगे बढ़कर दो कदम पीछे चल रहे हैं। दिन की महत्ता से इंकार नहीं मगर उलझन तब होती है जब उपलब्धियों की रोशन चकाचौंध में कहीं कोई स्याह सच कराहता नजर आता है और एक कड़वाहट गले तक आ जाती है

चांदनी चौक के नजदीक तुर्कमान गेट से एक पतला रास्ता बुलबुली खान की तरफ जाता है। यही वह इलाका है जहां रजिया सुल्तान यानी इतिहास की पहली महिला सुल्तान को दफनाया गया था। वह एक साहसी महिला थीं। हालांकि वह बहुत थोड़े समय (1236-1240 ई ) के लिए ही सत्ता में रहीं, लेकिन थोड़े से शासन काल ही में उन्हें अपने सरदारों के विरोध का जबर्दस्त सामना करना पड़ा। अहाते के मध्य में बनी इन दो क्रबों में से दूसरी क्रब अज्ञात है। दक्षिण कोने में दो ओर क्रबें हैं, जिनके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। इसके दक्षिणी दीवार पर एक महराब है। यहां की गलियों की चौड़ाई केवल तीन फिट है । इस मकबरे से बाहर निकलते ही तरह- तरह की दुकानें है। यहां पर बड़ी संख्या में लोग रहते भी हैं। यह गली इतनी पतली है कि यहां पर रिक्शा या फिर गाड़ी का जाना नामुमकिन है। तुर्कमान गेट से यह एक किलोमीटर दूरी पर और चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन से मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है।
आज इस कब्रगाह की हालत देखेंगे तो महिला दिवस का डंका बजाने वालों की हकीकत समझ में आएगी।
देखिए, देश के सबसे बड़े ओहदे पर महिला है। सरकार के भी कान खींच-खींचकर फिलहाल उसे एक महिला ही चला रही है। उसपर से दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का रुतबा देख लें। इनके राज में इल्तुतमिश की बेटी और एक जमाने की क्रांतिकारी महिला की कब्र उपेक्षित है। वह एक गौरवशाली इतिहास लिए लेटी है। अपनी कब्र पर एक छत को तरसती हुई।हालांकि, रजिया सुल्तान का मकबरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आता है। इस विभाग का यहां एक पत्थर भी लगा है। यह सुल्तान के बारे में थोड़ी जानकारी भी देता है। पर, इस स्थान को लेकर वह इससे ज्यादा गंभीर नहीं। दरअसल दिवस तो दिखावा है..., हकीकत अब भी बुलबुली खान इलाके में है। जब जी करें देख आएं।

 
inqlaab zindabad

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्यारे अफताब, रज़िया सुलतान की वीर गाथायें हमें बचपन से ही
    स्कूलों में पढाई जाती रही है,उन्हें दुश्मनों ने भटिंडा के किले में
    कैद कर रखा था, मगर वो बहादुर नारी उस ऊँचे किले की
    दीवार फांद कर बच निकालने में कामयाब रही, क्योंकि मैंने वो
    किला देखा है इसलिए मैं इस महिला की बहादुरी का कायल हूँ...!

    आज के राजनीतिज्ञों को सिर्फ अपनी कुर्सी की हिफाज़त करने की
    फ़िक्र रहती है, इसीलिये जगह-जगह देश का गौरवशाली इतिहास
    धीरे-धीरे गर्त में समा रहा है...!!!

    इस सचाई को प्रकाश में लाने के लिये बहुत-बहुत बधाई,
    प्यारे फ़ाज़िल...!!!

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    1. चाचा जी प्यार भरा आशीर्वाद देने के लिए शुक्रिया

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