सोमवार, 18 जून 2012

गोधरा का सच

 गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे जलाए जाने के आरोप में 90 से अधिक लोग गिरफ़्तार हुए थे जिनमें से 63 को पिछले साल पहले रिहा कर दिया गया और बाक़ी 31 को दोषी क़रार दिया गया था जिन 63 लोगों को रिहा किया गया उन पर लगे आरोप तो सिद्ध नहीं हो पाए लेकिन इन लोगों की जिंदगी केबेशकीमती नौ साल बर्बाद ज़रुर हो गए.
गोधरा शहर से थोड़ी दूर रहमतनगर की झुग्गियों से कई लोगों को पकड़ा गया था हबीब उन्हीं में से एक हैं. हबीब तो छूट गए लेकिन उनके दो भाई अभी भी जेल में हैं. हबीब के पिता मीडिया से बेहद नाराज़ दिखे और बार-बार आग्रह किए जाने का एक ही जवाब देते रहे, ''हमें मीडिया से कोई बात नहीं करनी. मेरी फोटो मत खींचना. बिल्कुल बात नहीं करनी बड़ी मुश्किल से हबीब बातचीत के लिए तैयार हुए तो नाराज़गी फट पड़ी,
"अभी बताओ हम क्या करें. नौ साल बर्बाद हुए मेरे. कोई लौटाएगा. दो भाई अभी भी बंद हैं. गोधरा में गाड़ी जलाई. हम लोग इधर झुग्गियों में थे. पुलिस उठा के ले गई. बंद कर दिया तब बताया कि क्यों बंद किया. हम तो स्टेशन से बहुत दूर थे."
शब्बीर भी इन्हीं झुग्गियों में रहते हैं. उन्हें बात करने से आपत्ति नहीं और उनका गुस्सा साफ़ था कि निर्दोष लोग जेल में हैं शब्बीर कहते हैं, ''अभी भी हम कहते हैं कि मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए. मैं रिहा हुआ लेकिन मामले की जांच ठीक से नहीं हुई. निर्दोष लोग अंदर बंद हैं. जांच होगी तभी मालूम चलेगा किसने किया था डिब्बा में आग लगाने का काम.'' शब्बीर जब गिरफ़्तार हुए तब उनकी पत्नी रेहाना आठ महीने के गर्भ से थीं. बेटी पैदा हुई लेकिन शब्बीर अपनी बेटी को नौ साल के बाद ही छू पाए रेहाना कहती हैं, ''जब ये पैदा हुई तो इसका बाप जेल में था. हमें छह महीने तक मिलने नहीं दिया गया. फिर जाते थे तो जाली के पार से बच्ची को दिखाया इन्हें. छू नहीं पाते थे अपनी बच्ची को. ये अपने बाप को पहचानती भी नहीं थी. एक साल पहले जब वापस आए तो पहली बार बच्ची को छुआ. तब ये साढ़े आठ साल की हो गई थी.''
रेहाना जैसी कई महिलाओं ने ये नौ साल मज़दूरी कर के गुज़ारे हैं. रेहाना बताती हैं कि बस्ती से गिरफ़्तार किए गए 11 लोग ग़रीब परिवार के हैं और सभी लोग मेहनत मज़दूरी कर के गुज़ारा चलाते हैं. वो कहती हैं, ''हम बर्तन मांज मांज के घर चलाते रहे इतने दिन. दो बेटियां हैं.पति जेल में था. भूखे मर जाते हम लोग. हमारा पति तो लौटा लेकिन अभी भी बस्ती के तीन चार लोग जेल में हैं. ये तो अन्याय है.''
ग़रीब बस्तियों में लोग बात कर लेते हैं लेकिन कई सभ्रांत घरों के लोगों को भी षडयंत्र रचने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया.
इन्हीं में से एक हैं रुहुल अमीन अठीला. पेशे से वकील. अठीला मिलने को तैयार हुए लेकिन पहली ही बात कही. न इंटरव्यू दूंगा न फोटो लेने दूंगा. आइए आपको चाय पिलाता हूं अठीला से आधे घंटे की मुलाक़ात में बार-बार इंटरव्यू के लिए ज़ोर देता रहा लेकिन अठीला तैयार नहीं हुए. उनकी आंखें मानो साफ़ कह रही हों- 'मैं मजबूर हूं तुम समझने की कोशिश करो.'
बातचीत के दौरान मोहम्मद हुसैन कलोटा से मुलाक़ात हुई. कलोटा पूर्व में गोधरा म्युनिसिपैलिटी के अध्यक्ष रह चुके हैं और गोधरा की घटना के बाद गिरफ़्तार किए गए थे. कलोटा पर भी षडयंत्र रचने का आरोप था लेकिन वो बरी किए गए हैं. कलोटा ने भी इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया.

जो पेशे से वकील हों या फिर सम्मानित नागरिक, उनका गिरफ़्तार होना फिर उनका बाइज़्ज़त छूट जाना अजीब तो लगता है लेकिन सबसे अजीब लगा उनका आरोपों से बरी होने के बाद भी मीडिया से बात न करना ऐसा क्या खोफ है जो उन्हें बोलने भी नही देता और जिंदगी के नो साल बेगुनाह होने के बाद जेल में काटे और फिर भी ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ दबी हुयी है जाने क्यों ...?
गोधरा कांड के बाद हुए दंगो में योग्नाबंद तरीके से मुस्लिम समुदाय का नरसंहार हुआ था ये भी याद रखने वाली बात हे कि रेल मंतारालय कि जांच में ये सिर्फ एक हादसा था ट्रेन के दब्बो के देखने से पहली नज़र में ही लगता हे कि आग अंदर से लगी थी क्योकि बहार ट्रेन के निचले हिस्से का पैंट नही जला था अब ये साजिश थी या कुछ और कहना मुश्किल हे लेकिन इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि ये एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा हो क्योकि इस घटना के बाद मुस्लिम समुदाय का नरसंहार हुआ जो सरकारी इशारे पर होने के आरोप आज तक लग रहे हैं और वो नरसंहार एक हैवानियत थी ये अजीब तो है लेकिन गोधरा का सच यही है.

spacial thank to Danish Akhtar Khan

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