मंगलवार, 7 अगस्त 2012

पुलिस से डरे नही सिर्फ ये जानकारी रखे


हर समय अनजान डर का साया और सवालों का घेरा अल्पसंख्यक होने के एहसास को और भी मुश्किल कर देता है. नाम के साथ मोहम्मद, आलम या अली लगा हो तो हर नज़र शक में, शक सवालों में और सवाल उत्पीड़न में बदल जाते हैं. अख़बार की सुर्खियां खौफ़ पैदा करती हैं तो सुरक्षा एजेंसियों की करगुजारियां और बयान चेतना पर हावी हो जाते हैं. ऐसा लगता है जैसे अल्पसंख्यक होने का मतलब नए दौर के भारत में डर और खौफ़ के साये में रहना ही हो गया है.

हमारे मुल्क के संविधान ने सभी वर्गों के लोगों को समान मानवाधिकार दिए हैं लेकिन अल्पसंख्यकों के लिए इनका अहसास भी अलग है. अल्पसंख्यक सरकार से लेकर समाज और व्यवस्था तक कहीं भी और किसी भी वक्त अपना मानवाधिकार खो सकते हैं.

लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती. अल्पसंख्यक अपना मानवधिकार खो सकते हैं, ये तो समस्या का सिर्फ एक पहलू भर है. चुनौती उससे भी बड़ी है. अपने मानवाधिकारों के लिए आवाज बुलंद करना आज और बड़ा खतरा हो गया है. कोई अल्पसंख्यक अपने अधिकारों की मांग करता है तो आमतौर पर उसे पीड़ित की नज़र से नहीं, बल्कि एक अल्पसंख्यक की नज़र से ही देखा जाता है.

हमारी एजेंसियां ऐसा बर्ताव करती हैं जैसे मानवाधिकार पर उसका हक़ ही न हो. कभी-कभी तो अल्पसंख्यकों से दूसरे ग्रहों के प्राणियों जैसा बर्ताव किया जाता है.

उसकी चीख, रोना किसी जायज गुनाह की सजा जैसा होगा और अगर उसने मुखालफत का साहस किया तो उसके चेहरे पर एक झटके में आतंकवाद का पेंट पोत दिया जाएगा और फिर एक और जिंदगी अदालत और जेल के बीच पिस जाएगी.

इसमें कोई शक नहीं कि आज हालात बद से बदतर हो गए हैं. लेकिन फिर भी देश में रह रहे एक बड़े अल्पसंख्यक वर्ग को हमारे संविधान और न्याय व्यवस्था में पक्का भरोसा है. लेकिन सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम अपने अधिकारों के बारे में बेदार नहीं.

बेदारी का सबसे पहला सबक यह है कि पुलिस जो हम पर अक्सर अत्याचार करती है, वह तानाशाह नहीं है बल्कि हमारी नौकर है और हमारी सुरक्षा के लिए उसे बहाल किया गया है. जनता की रक्षा करना और अन्य अपराधों के बारे में जनता में समझ पैदा करना और उनके रोकथाम के लिए प्रभावी उपाय करना पुलिस की कानूनी जिम्मेदारी है. इससे अलग अगर पुलिस कुछ भी करती है तो उस पर सवाल उठाने चाहिए.

अक्सर कहा जाता है कि पुलिस की पकड़ में आने पर गूंगे के मुंह में भी ज़बान आ जाती है, अच्छे-अच्छे बोलने लगते हैं, निर्दोष गुनहगार हो जाते हैं. कहने की इस बात को इतनी बार कहा गया है कि अब यही अंतिम सत्य लगता है. जबकि सच्चाई कुछ और है. पुलिस बेगुनाहों को गुनाहगार बनाने के लिए नहीं बल्कि बेगुनाहों को बचाने के लिए हैं. पुलिस की पकड़ में आए हर व्यक्ति के भी अधिकार हैं.

यहां यह जानना ज़रूरी है कि पुलिस किसी को कब और किस परिस्थिति में गिरफ्तार कर सकती है और गिरफ्त में आए व्यक्ति के पास क्या-क्या कानूनी अधिकार हैं. कानूनी अधिकारों की यह समझ बहुत से लोगों को बेवजह मुश्किलों में फंसने से बचा सकती है और अत्याचार पर उतारू पुलिस को भी सबक सिखा सकती है.

-पुलिस अधिकारी को किसी की गिरफ्तार करने का अधिकार तभी है जब उसके पास उसके गिरफ्तार करने का कोई ठोस कारण हो. जब भी हमारे आस-पास कोई पुलिस अधिकारी किसी की गिरफ्तारी करने आए तो हम पुलिस से उसका कारण पूछें और जब कारण से आप संतुष्ट हो जाएं तब ही उस व्यक्ति को गिरफ्तार करके ले जाने का मौका दें, बल्कि हो सके तो उसकी खबर मीडिया और वहां के सामाजिक और राजनीतिक नेताओं को भी दें और यह भी हमेशा याद रखे कि आम परिस्थितियों में किसी व्यक्ति के खिलाफ मानवाधिकार हनन का केवल आरोप होने पर कोई गिरफ्तारी नहीं की जा सकती.

-जब किसी जूनियर अधिकारी को किसी की बिना वारंट गिरफ्तारी पर तैनात किया गया हो तो ऐसी स्थिति में उसके पास एस.एच.ओ. का दिया हुआ एक लिखित आदेश जरूर होगा, जिसमें आवश्यक परिस्थिति में बिना वारंट गिरफ्तारी का आदेश और उसका औचित्य (Grounds) लिखा होगा. ड्यूटी पर मौजूद जूनियर अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किए जा रहे व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के आदेश के कारण को बताना होगा और अगर वह व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी के आदेश को देखना चाहता है तो वह आदेश भी दिखाया जाएगा. हमें किसी की गिरफ्तारी के दौरान यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गिरफ्तारी या इन्ट्रोगेशन करने वाले पुलिस अधिकारियों के नाम और पद के टैग लगाए हुए हैं या नहीं? साथ ही इस बात की भी पुष्टि कीजिए कि पुलिस अधिकारियों द्वारा गिरफ्तारी या इन्ट्रोगेशन का प्रविष्टी पुलिस स्टेशन के रजिस्टर में उसी समय समांतर रूप से किया जा रहा है या नहीं?

-जो पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी या इन्ट्रोगेशन कर रहा है उसे स्पष्ट तौर पर अपनी पहचान जाहिर करनी होगी और अपने नाम और पद का टैग लगाए रखना होगा.

-गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जल्द से जल्द उसकी गिरफ्तारी के आधार की जानकारी दी जाएगी और वकील की सेवाएं प्राप्त करने के अधिकार से उसे सूचित किया जाएगा.

-गिरफ्तारी करने आने वाला कोई पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के समय अवश्य ही एक अरेस्ट मेमो तैयार करेगा, जिसकी पुष्टि न्यूनतम एक गवाह द्वारा किया जाएगा जो या तो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार का कोई व्यक्ति होगा या फिर इस क्षेत्र का कोई सम्मानित व्यक्ति. यही नहीं, बल्कि अरेस्ट मेमो में गिरफ्तारी का दिनांक और समय दर्ज किया जाएगा और गिरफ्तार किया गया व्यक्ति भी अरेस्ट मेमो पर हस्ताक्षर करेगा, और उसकी एक प्रति उसे दी जाएगी.

-किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय पुलिस उस व्यक्ति के सम्मान व इज़्ज़त को ठेस नहीं पहुंचा सकती. पब्लिक के सामने व्यक्ति के प्रदर्शन या परेड किसी भी कीमत पर नहीं कराया जा सकता है.

-कानून के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की तलाशी लेते समय जबर व हिंसा से काम नहीं लिया जाएगा और उसकी इज़्ज़त और आबरू का पूरा ध्यान रखा जाएगा और उसके प्राईवेसी के अधिकार का भी ध्यान रखा जाएगा.

-बिना वारंट के किसी भी मामले में मानव अधिकारों और नागरिक अधिकारों के कार्यकर्ताओं बल्कि सच पूछिए तो हम सब की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. पुलिस पर यह जिम्मेदारी बनती है कि वह जैसे ही किसी व्यक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार करने आती है उसे तुरंत गिरफ्तार व्यक्ति को उसके अधिकारों से उसी की भाषा में पूरी तरह सूचित करे, जिस भाषा को वह गिरफ्तार व्यक्ति अच्छी तरह जानता और समझता हो. पुलिस को यह भी सलाह दी गई है कि ऐसे मामलों में सम्मानित नागरिकों से मदद लें. इस संबंध में मानव अधिकारों और नागरिक अधिकारों के कार्यकर्ताओं बल्कि हम सब गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारण की तफतीश कराने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. मानव अधिकारों और नागरिक अधिकारों के कार्यकर्ताओं को बल्कि हम सबको इस बात की पुष्टि कर लेनी चाहिए कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी की आधारों को समझा दिया गया है या नहीं? और ठीक वही बातें पुलिस रिकार्ड में भी गिरफ्तारी के आधार के रूप में दर्ज की गई हैं या नहीं?

-गिरफ्तार व्यक्ति को उसके उपरोक्त अधिकार से अवगत करने के अलावा पुलिस द्वारा यह सूचना दी जानी चाहिए कि वह अपनी पसंद के वकील के ज़रिए अपना बचाव कर सकता है. उसे इस बात की जानकारी भी दी जानी चाहिए कि वह राज्य के खर्च पर मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने का हकदार है.

-सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर अदालत में पेश किया जाएगा.

-अगर कोई व्यक्ति किसी योग्य गारंटी अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया गया है तो उसे लाज़मी तौर पर बताया जाएगा कि उसे जमानत पर रिहाई का अधिकार है. उसे ज़मानत या ज़मानतकारों से संबंधित जानकारी भी देनी चाहिए.

-गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को इन्ट्रोगेशन के दौरान में किसी भी समय अपने वकील से मिलने की अनुमति दी जानी चाहिए. इन्ट्रोगेशन किसी ऐसी जगह पर होना चाहिए जिसका पता साफ़ मालूम हो और जिसे सरकार द्वारा इस कार्य के लिए विशेष किया गया. वह जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ वह आसानी पहुँच सके और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के रिश्तेदार या दोस्तों को यह जरूर बताया जाना चाहिए कि किस स्थान पर इन्ट्रोगेशन चल रहा है. साथ ही कानून यह भी कहता है कि इन्ट्रोगेशन के दौरान किसी के जीवन, उसके आत्म-सम्मान और उसके स्वतंत्रता के अधिकार को किसी भी हाल में ठेस नहीं पहुंचना चाहिए.

-Arresting या Escorting अधिकारी की सुविधा के लिए भी आम हालात में बेड़ियों या हथकड़ियों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. अगर किसी कारण हथकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है तो उसका पंजीकरण डेली डायरी रिपोर्ट में किया जाना चाहिए. मिजस्ट्रेट की अनुमति के बिना किसी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को कस्टडी से कोर्ट तक हथकड़ी पहना कर यहां से वहां ले जाना मना है.

-अगर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अदालत से आदेश प्राप्त करने के बाद रिमांड पर पुलिस कस्टडी में रखा गया हो तो कस्टडी में हिरासत के दौरान हर 48 घंटों के अंदर-अंदर एक प्रशिक्षित मेडीकल अधिकारी जो स्वीकृत डॉक्टरों के पैनल पर होगा और जिसे संबंधित राज्य के निदेशक , हेल्थ सर्विसिज़ द्वारा अपवाइंट किया गया हो, द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाना चाहिए. पुलिस कस्टडी से रिहाई के समय गिरफ्तार व्यक्ति का चिकित्सा परीक्षण किया जाएगा जिसमें उसकी वास्तविक स्थिति का बयान होगा कि उक्त व्यक्ति पर किसी घाव या ज़ख्म का अस्तित्व है या नहीं?

-गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपने दोष के स्वीकार या अपने खिलाफ गवाही देने पर मजबूर नहीं किया जाएगा.

-पुलिस को दिए जाने वाले किसी बयान पर जांच के दौरान गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से हस्ताक्षर नहीं कराया जा सकता.

-किसी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की फोटोग्राफी तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि ऐसा करने की लिखित परमिशन न हो. तथा गिरफ्तार हुए व्यक्ति की फोटोग्राफी से पहले उसकी अनुमति सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस या डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस या क्रिमीनल इन्वेस्टीगेशन विभाग से पेशगी मंजूरी न ले ली जाए.

वैसे पुलिस की काली करतूतों की घटनाओं से न जाने कितने ही पन्ने काला किए जा सकते हैं, लेकिन ताजा मामला हमारे ध्यान में होना चाहिए कि किस तरह हैदराबाद के मक्का मस्जिद में पुलिस ने निर्दोष मुस्लिम युवाओं को सलाखों के पीछे धकेल दिया. और फिर उन्हें मुआवजा देना पड़ा, लेकिन हमारी कोशिश यह है कि अगर गलती से भी पुलिस आपको ऐसे मामलों में धकेलती है तो सावधान हो जाए. अपने अधिकार हमेशा अपने मन में याद रखें. हम किसी को डरा नहीं रहे हैं, बल्कि देश में हालात ऐसे हैं कि अपनों को सूचित करना हमारी मजबूरी बन गई है.

इसमें कोई शक नहीं है कि हमारे देश में बहुत से निर्दोष पुलिस की पकड़ में आ कर गुनाहगार हो गए. न उन्हें पुलिस ने माफ किया न समाज ने. पुलिस की गलती है लेकिन इससे ज्यादा गलती उनकी है जिन्होंने गिरफ्तारी अपनी किस्मत समझ लिया और चुप बैठ गए. हमारी चुप्पी बहुत कुछ हमसे छीन चुकी है. अब हमें अपनी आवाज़ बुलंद करनी ही होगी. अगर आपके सामने कोई निर्दोष पुलिस की पकड़ में आता है तो चुप नहीं बैठे, हर संभव तरीके अपनी आवाज उठाएंगे. क्योंकि कानून सो सकता है, लेकिन बहरा नहीं हो सकता, आपकी बुलंद आवाज़ को उसे सुनना ही पड़ेगा.

लेखक:- अफरोज आलम साहिल

इन्कलाब जिंदाबाद

4 टिप्‍पणियां:

  1. Aftab bhai ye sab kitabi baatein Muslamno k liye nahi h ... parade to atankwad k naam se poore news channel per dikahi jati ... police station per 5 ya 6 din without F.I.R rakha jata h ... or bhi kuch koi real rasta nikalye ... Ajj bhi jailo mei ratio se zaida Muslim naujavan bandh h

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  2. मेरा नाम खेताराम है मैं गांव-केकड़,तहसिल-सेड़वा,जिला-बाड़मेर (राजस्थान ) का रहने वाला हूं।कुछ लोगों ने सरकारी जमीन पर मेरा रास्ता रोक लिया।मैने 18जून को सम्पर्क पोर्टल पर शिकायत डाली,1जुलाई को जिला क्लेकटर को लिखा जिसमे मैने रास्ता खुलवाये या आत्म हत्या की अनुमति की मांग की।लेकिन 5जुलाई तक कोई कार्यवाही नही हुई तो मै तंग आकर के कोर्ट परिसर मे फंदा लगाकर लटक गया।वही खड़े आम लोगों द्वारा बचा लिया गया।उस दिन के बाद आज पुलिस आई और गांव वालों से मिलकर ऊल्टा मुझे ही धमकाया जा रहा है क्योकि उनका बहुमत है क्या करू आप ही बताये

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  3. aftab bhai i am talking about kheta ram please slove problem and give best guide line
    in real your thinking is best and heigher good nice

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